सीमा शर्मा ‘तमन्ना’
नोएडा, उत्तर प्रदेश
वीरान सी जिंदगी में सदियों का
वो, सूनापन आज भी जिंदा है
हैं कुछ ख्वाब, जो पड़े अधूरे
कुछ वो रिश्ते जो टूटे, कुछ पूरे
हैं कुछ दबी-दबी सी वो ख्वाहिशें
जो आकर होंठों के दरमियान सहमी
दबी और कुचली कुछ फ़रमाइशें
दर्द के लबादे में लगे पैबंदो की वो
पल-पल की कभी न ख़त्म होने
वाली वो बेरहम सी आजमाइशें
जिनकी पनाहों में कैद आज भी
ये चंचल मन का परिंदा है
कहते हैं हजारों अंधेरी उन काली
रातों के बाद सुख का सवेरा आएगा
दिया है जख्म़ वक्त ने ये भी तय है कि
मरहम भी तो यही वक्त ही लगाएगा
कल बुरा था गुजरना था गुजर गया
आज है अच्छा तो रखना उम्मीद कि
कल भी तो अच्छा ही बस आएगा
हो कैसा भी ये तो गुज़र ही जाएगा
ये वक्त है मेरे दोस्तों इसकी रफ्तार को
कोई चाहकर भी रोक कहां पाएगा
फिर क्यों खोना उन पलों को, वो पल
जो सभी के हिस्से में सिर्फ चुनिंदा हैं
ग़र सच पूछो हर शख़्स यहां बस,
किसी उम्मीद का बाशिंदा है