Tuesday, November 26, 2024
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भारतीय खगोलविदों ने हासिल की सूर्य के क्रोमोस्फीयर की घूर्णन गति में होने वाले परिवर्तन का मानचित्रण करने में कामयाबी

खगोलविदों ने कोडईकनाल सौर वेधशाला में सूर्य के 100 वर्षों के दैनिक रिकॉर्ड का उपयोग करके भूमध्य रेखा से लेकर उसके ध्रुवीय क्षेत्रों तक, सूर्य के क्रोमोस्फीयर की घूर्णन गति में होने वाले परिवर्तन का मानचित्रण करने में पहली बार कामयाबी हासिल की है। यह शोध सूर्य के आंतरिक कामकाज की एक पूरी तस्वीर देने में मदद कर सकता है।

पृथ्वी एक कठोर गेंद की तरह घूमती है, जो हर 24 घंटे में एक पूरा चक्कर लगाती है। यह घूर्णन पृथ्वी पर हर जगह एक जैसा है, चाहे वह व्यस्त नगर बैंगलोर हो या अंटार्कटिका के बर्फीले मैदान। हालांकि, सूर्य की कहानी पूरी तरह से अलग है। प्लाज्मा की एक विशाल गेंद होने के कारण सूर्य के विभिन्न भाग अपने अक्षांश के आधार पर अलग-अलग गति से घूर्णन करते हैं। यह लंबे समय से ज्ञात है कि सूर्य की भूमध्य रेखा अपने ध्रुवों की तुलना में बहुत तेजी से घूमती है। भूमध्य रेखा क्षेत्र को एक चक्कर पूरा करने में सिर्फ 25 दिन लगते हैं, जबकि ध्रुवों को आराम से 35 दिन लगते हैं। घूर्णन गति में इस अंतर को विभेदक घूर्णन कहा जाता है। अक्षांश और समय के एक फलन के रूप में घूर्णन गति में परिवर्तन की पेचीदगियों को समझना, सूर्य को समझने के लिए महत्वपूर्ण है।

ऐसा इसलिए है क्योंकि सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र के साथ विभेदक घूर्णन की परस्पर क्रिया ही सौर डायनेमो, 11-वर्षीय सौर चक्र और इसकी तीव्र गतिविधि की अवधि, के पीछे है, जो पृथ्वी पर चुंबकीय तूफान भी पैदा करती है। विभेदक घूर्णन की खोज 19वीं शताब्दी में कैरिंगटन द्वारा की गई थी, जिन्होंने देखा कि सूर्य की दृश्यमान सतह पर सूर्य के धब्बे उनके अक्षांश के आधार पर अलग-अलग गति से घूमते हैं। हालाँकि सौर भूमध्य रेखा के लगभग 35 डिग्री उत्तर या दक्षिण से अधिक अक्षांशों पर सूर्य के धब्बे दिखाई नहीं देते हैं और ध्रुवीय अक्षांशों के करीब विभेदक घूर्णन को मापने के लिए अन्य विधियों का उपयोग करना पड़ता है। ये या तो स्पेक्ट्रोग्राफ पर निर्भर थे, जिनका इस विशेष उद्देश्य के लिए उपयोग करना आसान नहीं है या उन्हें उन दुर्लभ सनस्पॉट की प्रतिक्षा करनी पड़ती थी जो कभी-कभी उच्च अक्षांशों पर होते थे। ये विधियां उन रिपोर्टों की पुष्टि करने के लिए अनुपयुक्त हैं कि कैसे असमान घूर्णन स्वयं एक सौर चक्र में समय के साथ बदलता है आदि।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के एक स्वायत्त संस्थान, भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (आईआईए) के खगोलविदों ने भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान द्वारा संचालित कोडाईकनाल सौर वेधशाला द्वारा बनाए गए 100 वर्षों से अधिक समय के सूर्य के दैनिक रिकॉर्ड से सौर प्लेज और नेटवर्क का उपयोग किया। ये वेधशाला इस वर्ष अपनी 125वीं वर्षगांठ मना रही है।

आईआईए में काम करने वाले अध्ययन के सह-लेखक मुथु प्रियल ने कहा, “कोडाईकनाल सौर वेधशाला पूरी दुनिया में ऐसे दो स्थानों में से एक है, जहाँ इस तरह के दीर्घकालिक डेटा हैं।” उन्होंने आगे कहा, “हमें घूर्णन गति को मापने के लिए सौर प्लेज और नेटवर्क का उपयोग करने का विचार आया। उन्होंने कहा कि 393.3 नैनोमीटर (कैल्शियम K वर्णक्रमीय रेखा के कारण) की विशिष्ट तरंगदैर्घ्य पर कैप्चर की गई छवियां निचले और मध्य क्रोमोस्फीयर को प्रदर्शित करती हैं और प्लेज (उज्ज्वल क्षेत्र) और नेटवर्क सेल (संवहनी संरचनाएं) जैसी प्रमुख विशेषताओं को प्रदर्शित करती हैं।‘‘

प्लेज, सनस्पॉट के विपरीत, कमजोर चुंबकीय क्षेत्रों वाले चमकीले क्षेत्र हैं। वे क्रोमोस्फीयर में रहते हैं, और सनस्पॉट की तुलना में काफी बड़े होते हैं, जो सनस्पॉट के आकार से 3 से 10 गुना तक होते हैं। दूसरी ओर, नेटवर्क विशेषताएं कमजोर चुंबकीय क्षेत्रों से जुड़ी होती हैं और लगभग 30,000 किमी चौड़ी होती हैं – इन्डिविजुअल सनस्पॉट से थोड़ी बड़ी, लेकिन सनस्पॉट समूहों से छोटी। सनस्पॉट के विपरीत, प्लेज और नेटवर्क दोनों ही पूरे सौर चक्र में सूर्य की सतह पर लगातार मौजूद रहते हैं, जिससे वैज्ञानिक ध्रुवों पर भी घूर्णन दर की जांच कर पाते हैं।

वेधशाला ने फोटोग्राफिक प्लेटों और फिल्मों का उपयोग करके क्रोमोस्फीयर का सावधानीपूर्वक दस्तावेजीकरण किया था और इस मूल्यवान डेटा का हाल ही में एक बड़े प्रारूप वाले सीसीडी कैमरे का उपयोग करके डिजिटलीकरण किया गया है, जिससे यह विश्व भर के शोधकर्ताओं के लिए सुलभ हो गया है। इस पेपर के सह-लेखक और आईआईए के प्रोफेसर जगदेव सिंह ने कहा, “हमने जानकारी के इस खजाने का उपयोग करने का फैसला किया और छवियों से प्लेज और नेटवर्क विशेषताओं पर सावधानीपूर्वक डेटा निकाला। इन विशेषताओं को फिर सूर्य के उत्तरी और दक्षिणी गोलार्धों में 10-डिग्री अक्षांश बैंड के भीतर उनके स्थान के आधार पर वर्गीकृत किया गया।”

इस डेटा का विश्लेषण करके, टीम विभिन्न अक्षांशों पर इन विशेषताओं की घूर्णन अवधि निकालने में सक्षम थी। इससे सूर्य के विभेदक घूर्णन की एक स्पष्ट तस्वीर सामने आई– भूमध्य रेखा पर तेज़ (13.98 डिग्री प्रति दिन) और ध्रुवों की ओर धीमा (80 डिग्री अक्षांश पर 10.5 डिग्री प्रति दिन)। दिलचस्प बात यह है कि प्लेज और नेटवर्क दोनों विशेषताओं ने उल्लेखनीय रूप से समान घूर्णन दर प्रदर्शित की। इससे प्लेज और नेटवर्क दोनों की संभावित साझा उत्पत्ति का पता चलता है, जो संभवतः सूर्य के आंतरिक भाग में फोटोस्फीयर (दृश्य सतह) के नीचे स्थित है।

आईआईए के प्रो. बी. रविंद्र ने कहा, “यह शोधपत्र दर्शाता है कि पहली बार वैज्ञानिकों ने भूमध्य रेखा से ध्रुव तक सूर्य के घूर्णन को मापने के लिए क्रोमोस्फेरिक नेटवर्क सेल्स का सफलतापूर्वक उपयोग किया है। सूर्य के विभेदक घूर्णन को समझना इसके चुंबकीय क्षेत्र और इसकी गतिविधि को समझने के लिए महत्वपूर्ण है। यह शोध क्रोमोस्फेरिक विशेषताओं का उपयोग करके सूर्य के आंतरिक कामकाज की एक अधिक संपूर्ण तस्वीर के लिए मार्ग प्रशस्त करता है।”

यह शोधपत्र एस्ट्रोफिजिकल जर्नल में प्रकाशित हुआ था, जिसका शीर्षक था “इक्वेटर टू पोल सोलर क्रोमोस्फेरिक डिफरेंशियल रोटेशन यूजिंग सीए-के फीचर्स डे्युव्युड फ्रॉम कोडाइकनाल डेटा” और इसे खरायत, हेमा (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स एंड एमएलकेपीजी कॉलेज, बलरामपुर) और भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान से सिंह, जगदेव, प्रियाल, मुथु और रवींद्र, बी द्वारा लिखा गया था।

संदर्भ: द एस्ट्रोफिजिकल जर्नल, 968:53 (9पीपी), 2024 जून 20

लेख लिंक: https://automatedtest.iopscience.iop.org/article/10.3847/1538-4357/ad4992

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