Thursday, December 19, 2024
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शुभ और दुर्लभ संयोग में होगी चैत्र नवरात्रि की शुरुआत, घोड़े पर सवार होकर आएंगी मां दुर्गा

भोपाल (हि.स.)। सनातन वैदिक धर्म में नवरात्रि के पर्व का विशेष महत्व होता है। नवरात्रि पर लगातार नौ दिनों तक देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की विधि-विधान के साथ पूजा उपासना की जाती है। इस वर्ष चैत्र नवरात्रि 9 अप्रैल से आरंभ होकर 17 अप्रैल तक रहेगी।

हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो जाती है। इसके साथ इस तिथि से ही नया हिंदू नववर्ष विक्रम संवत आरंभ होता है। नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना होती है, फिर अष्टमी और नवमी तिथि को छोटी कन्याओं की पूजा होती है। इस वर्ष चैत्र नवरात्रि पर मां दुर्गा घोड़े पर सवार होकर स्वर्ग लोक से पृथ्वी पर आ रही हैं। धर्म शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि पर देवी दुर्गा पृथ्वी पर आती हैं और 9 दिनों तक अपने भक्तों को आशीर्वाद देकर उनकी हर एक परेशानियों को दूर करती हैं। इस बार चैत्र नवरात्रि की शुरुआत बहुत ही शुभ और दुर्लभ संयोग में होने जा रही है।

यह जानकारी बुधवार को प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य डॉ. मृत्युञ्जय तिवारी ने दी। उन्होंने बताया कि वैदिक पंचांग के अनुसार इस वर्ष चैत्र नवरात्रि पर 30 वर्षों बाद बहुत ही शुभ योग बनने जा रहा है। दरअसल, 30 सालों बाद चैत्र नवरात्रि पर अमृत सिद्धि योग, शश योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और अश्विनी नक्षत्र का संयोग बनेगा।

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का है अत्याधिक महत्व

उन्होंने बताया कि सनातन नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को है। इस अवसर पर नववर्ष का स्वागत केवल मानव ही नहीं पूरी प्रकृति कर रही होती है। ॠतुराज वसंत प्रकृति को अपने आगोश में ले चुके होते हैं, पेड़ों की टहनियां नई पत्तियों के साथ इठला रही होती हैं, पौधे फूलों से लदे इतरा रहे होते हैं। खेत सरसों के पीले फूलों की चादर से ढंके होते हैं। किसलयों का प्रस्फुटन, नवचैतन्य, नवोत्थान, नवजीवन का प्रारंभ मधुमास के रूप में प्रकृति नया श्रृंगार करती हैं। कोयल की कूक वातावरण में अमृत घोल रही होती है। मानो दुल्हन सी सजी धरती पर कोयल की मधुर वाणी शहनाई सा रस घोलकर नवरात्रि में मां के धरती पर आगमन की प्रतीक्षा कर रही हो।

इसी दिन ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण किया था

डॉ. तिवारी के अनुसार हिंदू नववर्ष पूर्णतः वैज्ञानिक, शाश्वत और तथ्य पर आधारित है। इस तिथि का अपने शास्त्र में विशेष महत्व है। इस तिथि से ब्रह्मा ने सृष्टि निर्माण प्रारंभ किया था। ब्रह्म पुराण में वर्णन है, चैत्रे मासी जगद् ब्रह्मा ससर्ज प्रथमे अहनि। शुक्ल पक्षे समग्रेतु सदा सूर्योदये सति। अर्थात ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना चैत्र मास के प्रथम दिन, प्रथम सूर्योदय होने पर की। इस शुक्ल प्रतिपदा को सुदी भी कहा जाता है। इस दिन से ही नौ दिवसीय चैत्र नवरात्र यानि वासंतिक नवरात्र का प्रारंभ होता है। इसमें सनातन समाज शक्ति की उपासना हेतु भक्ति में लीन होता है।

इस दिन का विशेष महत्त्व

उन्होंने बताया कि वर्ष प्रतिपदा के दिन ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशव राव बलिराम हेडगेवार का जन्म हुआ। संघ की शाखाओं में आद्य सरसंघचालक प्रणाम दिया जाता है। शकारी विक्रमादित्य द्वारा परकीय विदेशी आक्रमणकारी शकों से भारत को मुक्त करा कर नए विक्रमी संवत का प्रारंभ किया। महर्षि दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की, त्रेतायुग में प्रभु रामचंद्र ने राक्षसी आतंक का नाश और अधर्म पर धर्म की विजय प्राप्त कर रामराज्य की स्थापना की और इस तिथि को ही उनका राज्याभिषेक हुआ।

महाभारत के धर्म युद्ध में सत्य की विजय हुई और द्वापरयुग में इसी दिन युधिष्ठिर का राज्याभिषेक और युधिष्ठिर संवत का प्रारंभ हुआ और ग्रह और नक्षत्र में भी परिवर्तन होता है। भगवान गौर और गणेश की पूजा भी इसी दिन से तीन दिनों तक राजस्थान में की जाती है। हिंदू नववर्ष को महाराष्ट्र, कोंकण और गोवा के क्षेत्र में गुड़ी पड़वा, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना में उगादी, राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में थापना एवं सिंधी क्षेत्र में चेती चांद और जम्मू-कश्मीर में नवरेह नाम से मनाया जाता है।

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