Saturday, September 21, 2024
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श्री द्विमुखी चिंताहरण गणपति की अद्भुत प्रतिमा के दर्शन करने के लिए दूर-दूर से आते हैं भक्त

गणेशोत्सव विशेष (हि.स.)। प्राचीन एवं ऐतिहासिक धार्मिक नगरी दशपुर की पहचान देश की एक मात्र अद्वितीय भव्य श्री द्विमुखी भगवान गणेशजी की प्रतिमा के कारण भी है। गणपति चौक जनकुपूरा स्थित यह दुर्लभ प्रतिमा पाषाणयुगीन है, सात फिट ऊँची गणपति की खड़ी मुद्रा वाली इस अप्रतिम नयनाभिराम प्रतिमा का स्वरुप अत्यंत ही सुंदर व कलात्मक है। प्रतिमा का आगे का भाग पंचसुण्डी रुप में और पीछे का स्वरुप श्रेष्ठी (सेठ) की मुद्रा को प्रदर्शित करता है। मस्तक पर सेठ के समान पगड़ी व शरीर पर बण्डी पहनी आकृति है, आगे व पीछे दोनों मुखों के पूजा के विधान भी अलग-अलग है। इस अनोखी प्रतिमा के दर्शन के लिये दूर दूर से अनेको दर्शनार्थी आते हैं।

मध्यप्रदेश के मंदसौर में स्थित श्री द्विमुखी चिंताहरण गणपति के नाम से विख्यात इस प्रतिमा का ज्ञात इतिहास लगभग 95 वर्ष पुराना है। हालांकि प्रतिमा का प्रस्तर आभा मंडल प्राचीन शिल्प का उत्कृष्ट व सर्वोत्कृष्ट स्वरुप प्रदर्शित करता है, इस लिहाज से प्रतिमा का इतिहास अवार्चीन भी हो सकता है। प्रतिमा का प्राकटय स्थल नाहर सय्यद दरगाह की पहाड़ी पर स्थित तलाई है। बताया जाता है कि स्थानीय निवासी मूलचंद स्वर्णकार को स्वप्न में इस स्थान पर प्रतिमा के होने का आभास हुआ, यह कोई किवदंती नही वरन् स्पष्ट तथ्य है। स्वप्न की पुष्टि के लिये मूलचंद स्वर्णकार ने जब उस स्थान पर जाकर देखा तो पत्थरों में दबी यह स्वप्न दृष्टा प्रतिमा सामने प्रत्यक्ष दिखाई दी। मूलचंद स्वर्णकार को सवंत 1986 में आषाढ़ सुदी पंचमी दिनांक 22 जून 1929 को प्रतिमा को प्रतिष्ठापित करने का प्रेरणात्मक आदेश प्राप्त हुआ। उन्होंने आषाढ़ सुदी 10 विक्रम संवत 1986 को शास्त्रीय विधि विधान के साथ इस अद्वितीय प्रतिमा को पत्थरों के बीच से निकालकर धुमधाम से बैलगाड़ी में विराजित कर आगे बढ़ाया ।

बैलगाडी आगे नहीं बढी और वह बनाया मंदिर

तत्कालीन समय के साथी व्यक्तियों के कथनानुसार द्विमुखी गणेशजी की इस प्रतिमा को नरसिंहपुरा क्षेत्र में किसी उचित स्थान पर प्रतिष्ठापित करने हेतु बैलगाड़ी से ले जाया जा रहा था। चूंकि उस समय नरसिंहपुरा जाने के लिये जनकुपुरा से मदारपुरा होकर जाना सुगम मार्ग था, इसलिये बैलगाड़ी को जनकुपुरा से ले जाने का निश्चय किया गया। बैलगाड़ी जनकुपुरा में इस स्थान पर रुक गई जहां द्विमुखी चिंताहरण गणेशजी का मंदिर है। पहले इस स्थान को प्रचलित नाम इलाजी चौक के नाम से जाना जाता था जो अब गणपति चौक के नाम से प्रचलन में आ गया है। इसी मंदिर के कारण यह नाम प्रचलित हो गया चूंकि प्रतिमा को नरसिंहपुरा ले जाने का निश्चय किया गया था इसलिये बैलगाड़ी का आगे बढ़ाने का खूब प्रयास किया लेकिन लाख कोशिश के बादभी बैलगाड़ी एक इंच भी आगे नहीं बढ़ी। भगवान गणेशजीकी इच्छा को सर्वोपरि मानकर इसी स्थान पर दूसरे दिन यानि एकादशी को प्रतिमा की विधिपूर्वक स्थापना की गई तब से यह स्थान गणपति चौक के नाम से जाना जाता है।

अलग अलग रूप व मुद्राएं प्रकट होती है

इस द्विमुखी प्रतिमा के दोनों और के मुख अलग-अलग रुप व भाव मयी मुद्राएं प्रकट करते है। आगे के मुख में पाँच सुण्ड है पीछे के मुख में एक सुण्ड व सिर पर पगड़ी धारण किया विशेष श्रृंगार है जो भगवान श्री गणेश को श्रेष्ठिधर सेठ के रुप में अभिव्यक्त करता है। कालांतर में जनकुपुरा क्षेत्र के महानुभावों की अगुवाई व नगरवासियों के सहयोग से मंदिर को व्यवस्थित व स्थानोंचित भव्य रुप दिया गया, वर्तमान में यह मंदिर नगर ही नही समूचे अंचल के धमार्लुजनों की आस्था का केन्द्र बन चुका है। प्रति बुधवार यहां सायंकाल महाआरती होती है। मंदिर में अन्य देवी देवता की प्रतिमाएं भी स्थापित है।

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