ललित ज्वैल
उज्जैन (हि.स.)। बुधवार 17 जुलाई को देवशयनी एकादशी है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु सृष्टि का भार भगवान शिव को सौंपकर क्षीरसागर में चार माह तक शयन करने चले जाते हैं। इन चार माहों में भगवान शिव सृष्टि का भार उठाते हैं। चार माह बाद देवउठनी एकादशी पर जब भगवान श्रीहरि विष्णु जागते हैं, तब वैकुंठ चतुर्दशी पर भगवान शिव सृष्टि का भार भगवान श्रीहरि विष्णु को सौपकर कैलाश पर्वत चले जाते हैं।
दरअसल इस परंपरा को लेकर उज्जैन में पौराणिक मान्यताएं हैं। इसी के चलते हर वर्ष वैकुंठ चतुर्दशी पर महाकाल मंदिर से भगवान शिव की पालकी रात्रि 11 बजे द्वारकाधीश मंदिर, जिसे आम बोलचाल में गोपाल मंदिर कहा जाता है, जाती है और रात्रि में गोपाल मंदिर में हरि और हर का मिलन होता है। भगवान शिव सृष्टि का भार भगवान विष्णु को सौंपकर रात्रि में ही अपने महल में(महाकाल मंदिर)लौट जाते हैं। देश-दुनिया में इस परंपरा को सोशल मीडिया के माध्यम से लाखो भक्त निहारते हैं।
उज्जैन में इस रात्रि हजारों भक्त इस परंपरा को देखने के लिए जुटते हैं। जब हरि-हर मिलन होता है तो शैव एवं वैष्णव परंपरानुसार भगवान शिव का तुलसी की माला से और भगवान विष्णु का आंकड़े की माला से क्रमश: अभिषेक पूजन होता है। ऐसी भी मान्यता है कि तत्कालिन समय रियासतकालीन दौर था, तब शैव एवं वैष्णवों के बीच होनेवाले मतभेदों को दूर करने के लिए यह परंपरा प्रारंभ हुई। हालांकि इस परंपरा का एक सिरा आज भी अधूरा है। जब देवशयनी एकादशी आती है और भगवान शिव को भगवान विष्णु सृष्टि का भार सौंपकर क्षीरसागर में विश्राम करने जाते हैं तो उज्जैन सहित देशभर में ऐसा कोई आयोजन नहीं होता है।
इनका कहना है
ज्योतिषाचार्य पं. हरिहर पण्ड्या के अनुसार देवशयनी एकादशी बुधवार 17 जुलाई को है। हरि-हर मिलन को लेकर जो पौराणिक मान्यता है,उस अनुसार देश-दुनिया में केवल उज्जैन में ही वैकुंठ चतुर्दशी को भव्य आयोजन होता है, जिसे हरि-हर मिलन कहते हैं। जब भगवान शिव को भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी को सृष्टि का भार सौंपकर क्षीरसागर में विश्राम हेतु जाते हैं, तो उज्जैन में कोई आयोजन नहीं होता है। स्कंद पुराण के अवंति खण्ड में सप्तपुरियों में क्षीरसागर का उल्लेख जरूर है, जो उज्जैन शहर में स्थित है।