Monday, November 18, 2024
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हमारे हनुमान जी विवेचना भाग बारह: राम दुआरे तुम रखवारे

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय
प्रश्न कुंडली एवं वास्तु शास्त्र विशेषज्ञ
साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया
सागर, मध्य प्रदेश- 470004
व्हाट्सएप- 8959594400

राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।

अर्थ
भगवान राम के द्वारपाल आप ही हैं, आपकी आज्ञा के बिना उनके दरबार में प्रवेश नहीं मिलता है।

भावार्थ
संसार में मनुष्य की बहुत सारी कामनाएं होती हैं, परंतु अंतिम कामना होती है मोक्ष की। हनुमान जी राम जी के दरबार में बैठे हुए हैं। विभिन्न प्रकार की कामनाओं को लेकर आने वाले पहले हनुमान जी के पास जाते हैं। उसके बाद आगे श्री रामचंद्र जी के पास जाते हैं। हनुमान जी लोगों की मोक्ष को छोड़कर सभी तरह की कामनाओं की पूर्ति कर देते हैं। परंतु मोक्ष प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को श्री राम चंद्र जी के पास जाना पड़ता है। श्री रामचंद्र जी के पास जाने के लिए श्री हनुमान जी के पास से होकर जाना पड़ता है। इसीलिए कहा गया है हनुमान जी की आज्ञा के बगैर कोई भी रामचंद्र जी के पास नहीं जा सकता है

संदेश
अगर आप ईश्वर में श्रद्धा रखते हैं तो किसी भी स्थिति में आपको डरने की आवश्यकता नहीं है।

इस चौपाई को बार बार पाठ करने से होने वाला लाभ-
“राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।”
ईश्वर की कृपा प्राप्त करने के लिए इस चौपाई का बार-बार पाठ करना चाहिए।

विवेचना
अगर हम इसका जनसाधारण में फैला हुआ अर्थ माने तो इस चौपाई का अर्थ है कि आप रामचंद्र जी के द्वार के रखवाले हैं। आपकी आज्ञा के बिना रामचंद्र जी से मिलना संभव नहीं है, परन्तु क्या यह विचार सही है। कहा गया है कि ईश्वर अनंत है और उनकी कथा भी अनंत प्रकार से कही गई है-

हरि अनंत हरि कथा अनंता। कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता॥
रामचंद्र के चरित सुहाए। कलप कोटि लगि जाहिं न गाए॥
(रामचरितमानस/बालकांड)

हरि अनंत हैं (उनका कोई पार नहीं पा सकता) और उनकी कथा भी अनंत है। सब संत लोग उसे बहुत प्रकार से कहते-सुनते हैं। रामचंद्र के सुंदर चरित्र करोड़ों कल्पों में भी गाए नहीं जा सकते हैं। एक तरफ तो कहते हैं पूरा ब्रह्मांड ही भगवान का घर है। दूसरी तरफ तुलसीदास जी कह रहे हैं श्री हनुमान जी रामचंद्र जी के महल के दरवाजे के रखवाले हैं। क्या रामचंद्र जी का अगर कोई घर है तो उसमें दरवाजा भी है। आइए हम इस पर चर्चा करते हैं-

कुछ लोग यह भी कह सकते हैं कि अगर ईश्वर को प्रसन्न करना है तो पहले संतों को, गुरु को, शास्त्रों के लिखने वालों को, अच्छे लोगों को प्रसन्न करो। अगर नई नवेली बहू को अपने पति को प्रसन्न करना है तो पहले सास-ससुर, जेठ-जेठानी को प्रसन्न करना पड़ेगा। नए समय में कोई भी नवेली बहू सास-ससुर, जेठ-जेठानी के चक्कर में नहीं पड़ती है। इसी प्रकार इस घोर कलयुग में अच्छे लोग या संत आदि का मिल पाना भी अत्यंत कठिन है। किसी ने इस पर पूरा गाना भी बना डाला-

पार न लगोगे श्रीराम के बिना,
राम न मिलेगे हनुमान के बिना।

परंतु क्या हनुमान जी की हैसियत द्वारपाल जैसी है। श्रीरामचंद्र जी जिनको अपना सखा, भरत जैसा भाई कहते हैं, क्या वे द्वारपाल हैं। क्या रुद्रावतार को हम द्वारपाल कह सकते हैं। क्या पवन पुत्र को हम दरवाजे का रखवाला कहेंगे। ऊपर में बता भी चुका हूं कि हनुमान जी की उत्पत्ति उसी खीर से हुई है जिस खीर को खाने से कौशल्या माता जी के गर्भ से श्री राम जी पैदा हुए हैं। यह सत्य है की हनुमान जी ने हमेशा अपने को श्री राम जी का दास कहा है, परंतु श्री राम जी ने कभी भी उनको अपना दास नहीं माना है। अपना भाई माना है, सखा माना है या संकटमोचक माना है। कहीं भी चाहे वह बाल्मीकि रामायण हो, रामचरितमानस हो या अन्य कोई रामायण हो किसी में भी श्रीरामचंद्र जी ने हनुमान जी को अपना दास नहीं कहा है। अब अगर श्री रामचंद्र जी ने को अपना दास नहीं माना है तो हम कलयुग के लोग हनुमान जी को द्वारपाल कैसे बना सकते हैं।

वास्तविकता यह है यहां पर द्वारपाल का अर्थ द्वारपाल नहीं है वरन लक्ष्य तक पहुंचने का एक सोपान है। अगर हमें किसी ऊंचाई पर आसानी से पहुंचना है तो हमें सीढ़ी या सोपान का उपयोग करना पड़ता है। हनुमान जी श्रीरामचंद्र जी तक पहुंचने की वही सीढ़ी या सोपान हैं। जिस प्रकार हम ब्रह्म तक पहुंचने के लिए पहले किसी देवता की मूर्ति पर ध्यान लगाते हैं। बाद में हम इसके काबिल हो जाते हैं कि हम बगैर मूर्ति के भी ब्रह्म के ध्यान में मग्न हो सकें। उसी प्रकार रामचंद्र जी का ध्यान लगाने के पहले आवश्यक है कि हनुमान जी का ध्यान लगाया जाये। हनुमान जी का ध्यान लगाना आसान है। हनुमानजी एक जीवंत देवता है। आज भी वह इस विश्व में निवास कर रहे हैं। उनकी मृत्यु नहीं हुई है। सही बात तो यह है कि श्रीरामचंद्र जी की कल्पना बगैर हनुमान जी के संभव नहीं है। आप को श्री रामचंद्र जी के साथ नीचे बैठे हुए हनुमान जी अवश्य दिखाई देंगे। संभवतः इसीलिए महर्षि तुलसीदास ने लिखा है “राम दुआरे तुम रखवारे”।

आइए अब हम इसका एक दूसरा विश्लेषण भी करते हैं। राम पूर्वतापिन्युपनिषद में कहा गया है-

रमन्ते योगिनोअनन्ते नित्यानंदे चिदात्मनि।
इति रामपदेनासौ परंब्रह्मभिधीयते।
(राम पूर्वतापिन्युपनिषद 1/6)

श्रीराम नाम के दो अक्षरों में ‘रा’ तथा ‘म’ ताली की आवाज की तरह हैं, जो संदेह के पंछियों को हमसे दूर ले जाती हैं। ये हमें देवत्व शक्ति के प्रति विश्वास से ओत-प्रोत करते हैं। इस प्रकार वेदांत वैद्य जिस अनंत सच्चिदानंद तत्व में योगिवृंद रमण करते हैं उसी को परम ब्रह्म श्रीराम कहते हैं। स्वयं गोस्वामी जी ने रामचरितमानस में राम ग्रंथों के विस्तार का वर्णन किया है-
नाना भांति राम अवतारा।
रामायण सत कोटि अपारा॥

मनुष्य के जीवन में आने वाले सभी संबंधों को पूर्ण तथा उत्तम रूप से निभाने की शिक्षा देने वाले प्रभु श्री रामचन्द्रजी के समान दूसरा कोई चरित्र नहीं है। श्रीराम सदैव कर्तव्यनिष्ठा के प्रति आस्थावान रहे हैं। उन्होंने कभी भी लोक-मर्यादा के प्रति दौर्बल्य प्रकट नहीं होने दिया। इस प्रकार मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में श्रीराम सर्वत्र व्याप्त हैं। कबीर दास जी ने कहा है:-

एक राम दशरथ का बेटा,
एक राम घट-घट में लेटा।
एक राम का सकल पसारा,
एक राम है सबसे न्यारा।

अब आप बताइए कि जो राम घाट घाट में लेटा हुआ है, जो राम सब जगह फैला हुआ है, उसके पास दरवाजा कहां होगा।
एक और वाणी है-

हममें, तुममें, खड्ग, खंभ में,
घट, घट व्यापत राम।।

इसे भक्त पहलाद ने अपने पिता हिरण्यकश्यप से कहा था। इसका साफ-साफ अर्थ है कि श्री राम हर जगह उपस्थित हैं। अतः यहां दरवाजा बनाने की आवश्यकता नहीं है। जब हर व्यक्ति के हृदय में श्री राम मौजूद हैं तो बीच में कोई और कैसे आ सकता है।
विभीषण जी की पहली मुलाकात हनुमान जी से श्रीलंका में हुई थी। विभीषण जी ने हनुमान जी को संत माना और कहा कि यह श्री रामचंद्र जी की कृपा है कि उनको हनुमान जी के दर्शन हुए। इसका अर्थ तो यह है की विभीषण जी मानते हैं अगर हनुमान जी का दर्शन होना है तो श्रीरामचंद्र जी की कृपा होनी चाहिए।

तामस तनु कछु साधन नाहीं। प्रीति न पद सरोज मन माहीं॥
अब मोहि भा भरोस हनुमंता। बिनु हरि कृपा मिलहिं नहिं संता॥२॥
(रामचरितमानस / सुंदरकांड /दोहा नंबर 6/ चौपाई नंबर दो)

मेरा तामसी (राक्षस) शरीर होने से साधन तो कुछ बनता नहीं और न मन में श्री रामचंद्रजी के चरणकमलों में प्रेम ही है। परन्तु हे हनुमान्‌! अब मुझे विश्वास हो गया कि श्री रामजी की मुझ पर कृपा है; क्योंकि हरि की कृपा के बिना संत नहीं मिलते॥२॥

जिस समय नल और नील समुद्र पर सेतु बना रहे थे उस समय वे हर पत्थर पर राम नाम लिखकर के समुद्र पर छोड़ देते थे। राम नाम लिखा हुआ पत्थर समुद्र पर तैरने लगता था। रामचंद्र जी ने भी एक पत्थर रखा परंतु वह डूब गया। रामचंद्र जी ने जब इसका कारण नल और नील से पूछा। उन्होंने जवाब दिया कि हम पत्थर पर आपका नाम लिख करके समुद्र मे छोड़ देते हैं। आपके नाम की महिमा से पत्थर तैरने लगता है। इस पत्थर आपका नाम नहीं लिखा इसलिए वह पत्थर डूब गया है।

बंदउँ नाम राम रघुबर को। हेतु कृसानु भानु हिमकर को॥
बिधि हरि हरमय बेद प्रान सो। अगुन अनूपम गुन निधान सो॥
(रामचरितमानस/ सुंदरकांड)

भावार्थ- मैं श्रीरघुनाथ जी के “राम” नाम की वंदना करता हूँ, जो कि अग्नि, सूर्य और चन्द्रमा को प्रकाशित करने वाला है। “राम” नाम ब्रह्मा, विष्णु, महेश और समस्त वेदों का प्राण स्वरूप है, जो कि प्रकृति के तीनों गुणों से परे दिव्य गुणों का भंडार है।

महामंत्र जोइ जपत महेसू। कासीं मुकुति हेतु उपदेसू॥
महिमा जासु जान गनराऊ। प्रथम पूजिअत नाम प्रभाऊ॥

भावार्थ- “राम” नाम वह महामंत्र है जिसे श्रीशंकर जी निरन्तर जपते रहते हैं, जो कि जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होने के लिये सबसे आसान ज्ञान है। “राम” नाम की महिमा को श्रीगणेश जी जानते हैं, जो कि इस नाम के प्रभाव के कारण ही सर्वप्रथम पूजित होते हैं।
किसी ने यह भी कहा है कि-
“राम से बड़ा राम का नाम।”

राम नाम की महिमा अपरंपार है और यह वह महामंत्र है जो कि किसी को भी मुक्ति दिला सकता है। अतः यह कहना कि बगैर हनुमान जी को प्रसन्न किए हुए रामजी को प्रसन्न नहीं किया जा सकता है, सही नहीं होगा। अब प्रश्न यह उठता है की हनुमान चालीसा में “राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।” क्यों लिखा गया है।

किसी भी परिवार में एक मुखिया होता है। यह मुखिया पिता भी हो सकता है घर का बड़ा भाई भी हो सकता है कई घरों में माता भी मुखिया का कार्य करती हैं। घर के बाकी सभी सदस्य अपने अपने कार्य के लिए स्वतंत्र होते हैं और वह आवश्यकता पड़ने पर मुखिया के अधिकार का भी इस्तेमाल कर लेते हैं।

दुआरे अवधी बोली का शब्द है जो की मूल हिंदी शब्द द्वारे का अपभ्रंश है। द्वारे शब्द के तीन अर्थ होते हैं- दरवाज़े पर, दर तक, पास।
इसी प्रकार रखवारे शब्द का अर्थ होता है चौकीदार या रखने वाला।

यहां पर हम दोनों शब्दों के कम प्रचलित अर्थ को लेते हैं। जैसे कि द्वारे का अर्थ पास और रखवारे का अर्थ रखने वाला। अब अगर “राम दुआरे तुम रखवारे” का अर्थ लिया जाए तो कहा जायेगा कि तुमने अपने पास रामचंद्र जी को रखा हुआ है। अर्थात तुम्हारे हृदय में राम हैं। यह सत्य भी है। इस संबंध में यहां पर यह घटना का जिक्र करना उपयुक्त होगा।

लक्ष्मण जी को इस बात का ही अभिमान हो गया था कि वे श्री रामचंद्र जी के सबसे बड़े भक्त हैं। अकेले वे ही हैं जो कि श्री रामचंद्र जी के साथ 14 वर्ष वन में रहे हैं। हर दुख और तकलीफ में उन्होंने श्री राम जी का साथ दिया है। श्री राम जी को लक्ष्मण जी के अभिमान का आभास हो गया और इसके उपरांत ही एक घटना घटी। घटना यू है-
राम दरबार सजा हुआ था। चारों भाई, सीता जी, हनुमान जी, गुरु वशिष्ट जी और सभी लोग अपने अपने आसनों पर विराजमान थे। श्री राम के राज्याभिषेक होने की प्रसन्नता में सीता मैया ने सभी को कुछ ना कुछ उपहार दिया। जिसमें श्री हनुमान जी को उन्होंने एक बहुमूल्य रत्नों की माला दी। हनुमान जी ने माला लेने के उपरांत उसके एक-एक मनके को तोड़कर के देखने लगे, फिर उन्होंने पूरी माला को तोड़ने के उपरांत फेंक दी।

सीता मैया के उपहार का अपमान देखकर श्री लक्ष्मण जी बहुत क्रोधित हो गए। उन्होंने श्री हनुमान जी से पूछा कि आपको इन रत्नों के मूल्य के बारे में नहीं पता है। यह रत्न कितने कीमती हैं। इस पर हनुमानजी ने कहा, ‘ मैंने यह हार अमूल्य समझ कर लिया था, परंतु बाद में मैनें पाया कि इसमें कहीं भी “राम” नाम नहीं है। मैं समझता हूं कि कोई भी वस्तु राम के नाम के बिना अमूल्य नहीं हो सकती। अतः उसे त्याग देना चाहिए।’ लक्ष्मण जी ने पुनः हनुमान जी से कहा कि आपके बदन पर भी कहीं राम नाम नहीं लिखा है तो आपको अपना बदन भी तोड़ देना चाहिए। लक्ष्मण की बात सुनकर हनुमानजी ने अपना वक्षस्थल तेज नाखूनों से फाड़ दिया और उसे लक्ष्मण को दिखाया। हनुमान जी के फटे हुए वक्षस्थल में श्रीराम दिखाई दे रहे थे। लक्ष्मण जी इस बात को देखकर आश्चर्यचकित रह गए और उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ।

यह कहानी एक दूसरे प्रकार से भी मिलती है। इसमें विभीषण एक रत्नों की माला मां सीता को भेंट की। उन्होंने यह माला अत्यंत मूल्यवान समझकर माता जानकी को भेंट की थी, उन्होंने यह भी सोचा था कि दूसरा कोई भी इतनी मूल्यवान माला मां को भेंट नहीं कर सकता है। श्री विभीषण जी के इस घमंड को माता सीता ने समझ लिया। माला पाने के उपरांत माता सीता ने श्री रामचंद्र जी से पूछा कि इस बहुमूल्य माला को मैं किसको दूं। श्री रामचंद्र जी ने कहा कि तुम सबसे ज्यादा जिसको मानती हो उसको यह माला दे दो। माता जानकी ने वह माला हनुमान जी को दे दी। इसके आगे की कहानी एक जैसी ही है।

इस प्रकार यह स्पष्ट श्री राम जी सदैव श्री हनुमान के साथ में रहते हैं, अतः यह कहना कि श्री हनुमान जी ने अपने पास श्री राम जी को रख लिया है – सही है । हनुमान जी के ह्रदय में विराजित श्री रामचंद्र जी से बगैर हनुमान जी की आज्ञा के मिल पाना असंभव है। अगर आपको हनुमान जी के हृदय में विराजित श्री राम जी से मिलना है तो आपको श्री हनुमान जी की आज्ञा लेनी पड़ेगी। अगर आपके अंदर वह सामर्थ्य है कि आप अपने हृदय के अंदर स्थित रामचंद्र जी को महसूस कर पा रहे हैं तो आप सीधे श्री रामचंद्र जी के पास पहुंच सकते हैं।

जय हनुमान

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