सनातन धर्म में होली का विशेष महत्व है। खुशियों और रंगों का यह त्योहार फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। फाल्गुन माह की पूर्णिमा के दिन होलिका दहन करने के पश्चात दूसरे दिन रंगोत्सव मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा के दिन स्नान-दान कर उपवास रखने से मनुष्य के दुखों का नाश होता है और उस पर भगवान विष्णु की विशेष कृपा होती है।
पंचांग के अनुसार इस बार होलिका दहन की तिथि फाल्गुन मास की पूर्णिमा यानि गुरुवार 17 मार्च के दिन पड़ रही है, इसके अगले दिन शुक्रवार 18 मार्च को रंगोत्सव मनाया जाएगा। पंचांग के अनुसार होलिका दहन का शुभ मुहूर्त गुरुवार को रात 9:20 बजे से रात 10:31 बजे तक रहेगा, लेकिन इस समय में भद्रा की पूंछ रहेगी, शास्त्रों के अनुसार भद्रा पूंछ में होलिका दहन कर सकते हैं। भद्राकाल गुरुवार 17 मार्च को दोपहर 1:30 से रात 1 बजे तक रहेगा। गोधूलि बेला के समय भद्राकाल होने से होलिका दहन या कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता, क्योंकि इसे अशुभ माना जाता है। ऐसे में यदि भद्राकाल के बाद होलिका दहन करना चाहते हैं, तो इसके लिए मुहूर्त देर रात 1:12 बजे से 18 मार्च को सुबह 6:28 बजे तक है। वहीं 17 मार्च को दोपहर 1:29 बजे से फाल्गुन पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ होगा और इसका समापन 18 मार्च को दोपहर 12:47 बजे होगा।
इस वर्ष होली पर कई शुभ योग बन रहे हैं। इस बार होली पर वृद्धि योग, अमृत योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और ध्रुव योग बन रहा है। इसके अलावा बुध-गुरु आदित्य योग भी बन रहा है। बुध-गुरु आदित्य योग में होली की पूजा करने से घर में सुख और शांति का वास होता है। इसके अलावा मान्यता के अनुसार फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तिथि तक होलाष्टक माना जाता है। इस दौरान किसी भी तरह का कोई शुभ कार्य नहीं होता है। होलाष्टक होली से पहले 8 दिनों तक माना जाता है। इस बार होलाष्टक 10 मार्च से लेकर 17 मार्च तक रहेगा।
सनातन मान्यता है कि हिराण्यकश्यप ने अपने बेटे प्रहलाद को इन 8 दिनों के दौरान बहुत यातनाएं दी थीं, इसलिए इन 8 दिनों तक कोई शुभ कार्य नहीं होता है। होलाष्टक के दौरान भूमि पूजन, गृह प्रवेश, मांगलिक नया व्यवसाय और नया काम शुरू करने से बचना चाहिए। इस दौरान 16 संस्कार जैसे कि विवाह संस्कार, जनेऊ संस्कार, नामकरण संस्कार जैसे कार्यों पर भी रोक लग जाती है। इसके अलावा होलाष्टक में किसी भी तरह का यज्ञ, हवन नहीं करना चाहिए। इन दिनों में नवविवाहता को अपने मायके नहीं जाना चाहिए। शास्त्रों में मान्यता है कि जिस क्षेत्र में होलिका के लिए लकड़ियां काटकर लगाई जाती है, वहां पर होलिका दहन तक कोई शुभ कार्य नहीं होता है।
पौराणिक कथा के अनुसार प्रहलाद को उनके पिता हिरण्यकश्यप ने उनकी भक्ति और ध्यान को भंग करने के लिए लगातार 8 दिनों तक कई तरह की यातनाएं और कष्ट दिए थे। ऐसे में कहा जाता है कि इन 8 दिनों तक कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। यही 8 दिन होलाष्टक कहे जाते हैं। 8वें दिन हिरण्यकश्यप की बहन होलिका, प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाती है, लेकिन प्रहलाद बच जाते हैं और होलिका जल जाती हैं। प्रहलाद के जीवित बचने की खुशी में दूसरे दिन रंगों की होली मनाई जाती है।