Friday, December 27, 2024
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कार्तिक पूर्णिमा 2023: विष्णु सहस्त्रनाम का करें पाठ, राहु-केतु जनित दोषों का होगा शमन

ज्योतिषाचार्य ऋचा श्रीवास्तव
बालाघाट, मध्य प्रदेश

साल में कुल 12 पूर्णिमाएं होती हैं। जिसमे कार्तिक पूर्णिमा को श्रेष्ठ माना गया है। भविष्य पुराण के अनुसार मासों में कार्तिक माह और पूर्णिमाओं में कार्तिक पूर्णिमा को सर्वोत्तम माना जाता है, क्योंकि ये पूरा माह भगवान विष्णु को समर्पित है।

कहा जाता है इस दिन पवित्र नदियों और कुंडों में स्नान करके भगवान श्री हरि का जप, तप, ध्यान, दान, पूजन आदि किया जाता है तो अन्य तिथियों से अधिक पुण्य फल की प्राप्ति होती है।

उत्तर भारत में इस दिन देव-दीपावली मनाई जाती है। क्योंकि इसी दिन भगवान शिव ने अत्याचारी त्रिपुरासुर का वध कर के तीनों लोकों को भयमुक्त किया था। तब भगवान विष्णु ने भगवान शिव को “त्रिपुरारी” नाम दिया था और देवताओं ने प्रसन्न होकर स्वर्ग में दीपावली मनाई थी। तब से पृथ्वी पर भी देव दीपावली मनाने की प्रथा शुरू हुई।

इस दिन नदियों में घी के दिये जलाकर प्रवाहित करना सर्वथा शुभ माना जाता है। कहा जाता है कि इससे पार्वती और शिव पुत्र कुमार कार्तिकेय की देखभाल करने वाली छः कृत्तिकाएं प्रसन्न होती हैं और दुर्भाग्य दूर करती हैं।

कहा जाता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने प्रथम अवतार मत्स्य अवतार लिया था।

इस दिन पितरों की शांति के लिए पूजा-उपासना भी शुभ होती है। महाभारत युद्ध के पश्चात पांडवों ने मारे गए योद्धाओं की आत्मा की शांति के लिए पूजन किया था।

कार्तिक पूर्णिमा तिथि

पंचांग के अनुसार इस वर्ष पूर्णिमा 26 नवम्बर 23 को दोपहर 3 बजकर 55 मिनट से प्रारम्भ होगी, जिसका समापन 27 नवम्बर को  दोपहर 2 बजकर 49 मिनट पर होगा। उदयातिथि के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा 27 नवम्बर 23 को मनाई जाएगी। इसी दिन सत्यनारायण भगवान की पूजा, पुर्णिमा व्रत, कार्तिक गंगा स्नान-दान करना उत्तम रहेगा।

देव दीपावली

इस वर्ष देव दीपावली 26 नवम्बर को मनाई जाएगी। क्योकि जब पूर्णिमा तिथि प्रदोष काल में विद्यमान होती है, उसी दिन देव दीपावली मनाई जाती है। सनातन मान्यता के अनुसार इसी दिन देवतागण धरती लोक पर आते हैं और धरतीवासी उनके स्वागत में संध्याकाल मे दीपदान करते हैं। इस रात में भी लक्ष्मी पूजा करना और चंद्रमा को अर्घ्य देना अति शुभ रहेगा।

उपाय

कार्तिक पूर्णिमा के दिन सुबह गंगाजल डाल कर स्नान करें। फिर भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र के आगे शुध्द घी का दीपक जलाएं। कलश में गंगाजल रखें। पीले फूल, पीले फल, पीली मिठाई, पीला चन्दन और तुलसी दल चढ़ाएं। विधिवत पूजन करें।

“ॐ नमो नारायणा” मंत्र का यथा शक्ति जाप करें। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। नव ग्रहों और पितरों का ध्यान करें। सभी देवी देवताओं का ध्यान करें। विधिवत पूजन के बाद किसी विष्णु, राम या कृष्ण मंदिर के वृद्ध ब्राह्मण को दान दें।

शाम को भगवान शिव का कच्चे दूध से अभिषेक कर पूजन-अर्चन करें। शाम को नदी या तालाब में देशी घी का दिया प्रवाहित करें। चंद्रोदय के बाद चन्द्रमा को अर्घ्य दें और खीर का भोग लगाकर पूजा करें।

इस प्रकार पूजन-अर्चन करने से कुंडली के सूर्य चन्द्र बलवान होते हैं। राहु-केतु जनित दोषों का शमन होता है और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। अतः ये पूर्णिमा अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। 

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