Sunday, September 8, 2024
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जानें कब मनाई जायेगी श्रावण मास की पुत्रदा एकादशी, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और विशेष योग

हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं और हर एकादशी का अपना एक विशेष महत्व है। पौराणिक मान्यता है कि संतान सुख की प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा जाता है। ऐसे दंपत्ति जो संतान सुख से वंचित हैं, उन्हें पुत्रदा एकादशी का व्रत जरूर रखना चाहिए। इस व्रत को करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा से उत्तम संतान की प्राप्ति होती है। साथ ही भगवान विष्णु का आशीर्वाद भी बना रहता है।

हिंदू पंचांग के अनुसार एक वर्ष में दो पुत्रदा एकादशी आती है, पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी कहा जाता है, वहीं श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को श्रावण पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। इस साल श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत शुक्रवार 16 अगस्त के दिन रखा जाएगा।

शुभ मुहूर्त

हिन्दू पंचांग के अनुसार श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की श्रावण पुत्रदा एकादशी का प्रारम्भ गुरुवार 15 अगस्त को 10:26 (AM) बजे होगा और समापन शुक्रवार 16 अगस्त को 9:39 (AM) बजे होगा। उदयातिथि के अनुसार श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत शुक्रवार 16 अगस्त को रखा जाएगा। वहीं व्रत पारण का समय शनिवार 17 अगस्त को सुबह 5:51 बजे से लेकर सुबह 8:05 बजे तक रहेगा। पंचांग के अनुसार इस वर्ष की श्रावण पुत्रदा एकादशी की तिथि के दिन विशेष प्रीति योग बन रहा है, जो दोपहर 1:12 बजे से शुरू होगा।

व्रत की विधि

पौष पुत्रदा एकादशी व्रत के दिन सुबह सूर्योदय के समय स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। अब घर के पूजा स्थल पर या पास के किसी मंदिर में जाकर व्रत का संकल्प लें और भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा करें। पूजा के दौरान भगवान विष्णु को पीले फल, पीले पुष्प, पंचामृत, तुलसी आदि समस्त पूजन सामग्री संबंधित मंत्रों के साथ अर्पित करें। भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें। पौराणिक मान्यता है कि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं। इस पावन दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें। इस दिन विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ करने से विशेष लाभ होता है।

व्रत कथा

भद्रावतीपुरी नामक नगर में सुकेतुमान नामक राजा राज करता था। संतान न होने की वजह से वैभवशाली राजा सुकेतुमान और रानी बहुत दुखी रहते थे। राजा और रानी को चिंता थी कि उनकी मृत्यु के बाद उनका अंतिम संस्कार कौन करेगा? तथा उनके पितरों को श्राद्ध कौन देगा और उनकी आत्मा को शांति कैसे मिलेगी? बीतते समय के साथ एक दिन राजा जंगल की तरफ शिकार के लिए गए। वहां अचानक से उन्हें बहुत तेज की प्यास लगी। 

एक तलाब देखकर राजा उसके समीप पहुंचे और पानी पीया। तालाब के समीप ही उन्हें एक आश्रम दिखाई दिया। पानी पीकर राजा ऋषियों से मिलने आश्रम में चले गए। ऋषि-मुनियों उस समय पूजा-पाठ कर रहे थे। राजा ने उत्सुकतावश ऋषियों से पूजा-पाठ के उस विशेष विधि को जानना चाहा। ऋषियों ने राजा को बताया कि आज पुत्रदा एकादशी है। इस दिन जो भी व्यक्ति व्रत और पूजा-पाठ करता है उसे संतान की प्राप्ति होती है।

राजा ने मन ही मन पुत्रदा एकादशी व्रत रखने का प्रण किया। वापस लौटकर उन्होंने रानी के साथ मिलकर पुत्रदा एकादशी का व्रत किया। पूरे विधि-विधान से विष्णु के बाल गोपाल स्वरूप की पूजा-पाठ किया। राजा सुकेतुमान ने द्वादशी को पारण किया। पुत्रदा एकादशी व्रत के प्रभाव से कुछ महीनों बाद पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।

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