आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा, कोजागरी पूर्णिमा अथवा रास पूर्णिमा भी कहते हैं। पौराणिक मान्यता है कि इस दिन चन्द्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार इस बार शनिवार 28 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा मनाई जाएगी।
सनातन धर्म में शरद पूर्णिमा के दिन कोजागरी व्रत माना गया है। इसी को कौमुदी व्रत भी कहते हैं। इसी दिन श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। मान्यता है इस रात्रि को चन्द्रमा की किरणों से अमृत टपकता है। तभी इस दिन उत्तर भारत में खीर बनाकर रात भर में रखने का विधान है। इसके अलावा शरद पूर्णिमा के दिन लक्ष्मी पूजा भी की जाती है। मान्यता है कि इस दिन ही माँ लक्ष्मी का अवतरण हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन माँ लक्ष्मी सभी के घर जाती हैं और उन पर कृपा बरसाती हैं।
लेकिन इस वर्ष 28 एवं 29 अक्टूबर अर्थात अश्वनी मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णमासी को खंड चंद्र ग्रहण लग रहा है। चंद्र ग्रहण का सूतक काल 9 घंटे पूर्व ही शुरू हो जाएगा। सूतक काल को अशुद्ध माना जाता है, इस वजह से उसमें शुभ कार्य, भोजन बनाना, खाना खाने समेत कई काम वर्जित होते हैं। ऐसे में शरद पूर्णिमा पर दिन में ही पूजा-अर्चना समेत अन्य कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
भारतीय समय के अनुसार ग्रहण का प्रारंभ रात्रि में 1:05 बजे चंद्र ग्रहण लगेगा तथा मोक्ष 2:22 रात्रि पर होगा। यह खग्रास चंद्रग्रहण ऑस्ट्रेलिया जापान, कोरिया, रूस, अटलांटिक महासागर, हिंद महासागर, पश्चिमी और दक्षिणी प्रशांत महासागर, अफ्रीका, यूरोप, एशिया और दक्षिण अमेरिका के पूर्वी उत्तरी भाग आदि में दिखाई देगा। चंद्र ग्रहण भारत में दिखाई देगा, इसलिए भारत में सूतक काल में माना जाएगा।
ज्योतिषाचार्य अनिल कुमार पाण्डेय ने बताया कि चंद्र ग्रहण के समय चंद्रमा अश्वनी नक्षत्र एवं मेष राशि में रहेगा। मिथुन, कर्क, वृश्चिक, धनु एवं कुंभ राशि के लिए यह ग्रहण शुभ, सिंह तुला और मीन राशि के लिए मिश्रित फलदाई है तथा मेष, वृष, कन्या और मकर राशि के लिए अशुभ फलदाई है।
पंचांग के अनुसार इस बार शरद पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ शनिवार 28 अक्टूबर को प्रात: 4:17 बजे से होगा और पूर्णिमा तिथि का समापन रविवार 29 अक्टूबर को आधी रात 1:53 बजे होगा, वहीं 28 अक्टूबर को देर रात 1:05 बजे चंद्र ग्रहण लगेगा तथा मोक्ष 2:22 बजे होगा। सूतक काल का समय चंद्र ग्रहण शुरूहोने के 9 घंटे पूर्व शनिवार 28 अक्टूबर को दोपहर 4:05 बजे से शुरू हो जाएगा और मध्य रात्रि 2:22 बजे तक रहेगा।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार चंद्र ग्रहण के मोक्ष के बाद खुले आसमान के नीचे आप खीर रख सकते हैं। इसके लिए आप खीर बनाने के लिए गाय के दूध में सूतक काल शुरू होने के पहले ही तुलसी के पत्ते या कुशा डाल दें। फिर उसे ढककर रख दें। इससे सूतक काल के दौरान दूध शुद्ध रहेगा। बाद में आप इसकी खीर बनाकर भोग लगा सकेंगे। इस दौरान खीर बनाने की प्रक्रिया ग्रहण खत्म होने के बाद शुरू की जाएगी, फिर भोर में आप अमृत वर्षा के लिए इसे खुले आसमान के नीचे रख सकते हैं।
शरद पूर्णिमा का महत्व
शरद पूर्णिमा का व्रत विशेष माना गया है। सनातन मान्यता कि शरद पूर्णिमा का व्रत रखने से रोग से मुक्ति मिलती है। जो लोग गंभीर रोग से पीड़ित हैं उनके लिए शरद पूर्णिमा का व्रत रखना विशेष फलदायी माना गया है। शरद पूर्णिमा को शाम के समय खीर बनाई जाती है और खीर को खुले बर्तन में रखकर रातभर चंद्रमा की किरणों में रखा जाता है और अगले दिन इस खीर को प्रसाद रूप में ग्रहण किया जाता है।
इसके अलावा शरद पूर्णिमा का व्रत संतान की लंबी आयु के लिए भी रखा जाता है यह व्रत सुख समृद्धि लाता है। शरद पूर्णिमा की रात तांबे या मिट्टी के कलश पर वस्त्र से ढंकी हुई लक्ष्मी की प्रतिमा को स्थापित कर पूजा करने का विधान बताया गया है। वहीं ज्योतिषाचार्यों के अनुसार शरद पूर्णिमा पर घी के 100 दीपक जलाने से घर लक्ष्मी जी की कृपा बरसती है और नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है।
शरद पूर्णिमा पूजा विधि
शरद पूर्णिमा को प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में सोकर उठें। इसके बाद नित्यकर्म से निवृत्त होकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें। शरद पूर्णिमा के दिन लक्ष्मी नारायण की पूजा की जाती है। इसके लिए पूर्णिमा वाली सुबह घी के दीपक जलाकर तथा गंध-पुष्प आदि से अपने इष्ट देवों, लक्ष्मी और इंद्र की आराधना करें। नारदपुराण के अनुसार इस दिन रात में मां लक्ष्मी अपने हाथों में वर और अभय लिए घूमती हैं। जो भी उन्हें जागते हुए दिखता है उन्हें वह धन-वैभव का आशीष देती हैं। शाम के समय चन्द्रोदय होने पर चांदी, सोने या मिट्टी के दीपक जलाने चाहिए। इस दिन घी और चीनी से बनी खीर चन्द्रमा की चांदनी में रखनी चाहिए। जब रात्रि का एक पहर बीत जाए तो यह भोग लक्ष्मी जी को अर्पित कर देना चाहिए।