उज्जैन (हि.स.)। भगवान शिव की पूजा-आराधना और विशेष कृपा पाने के लिए श्रावण माह, प्रदोष व्रत, सोमवार, प्रति माह की शिवरात्रि और महाशिवरात्रि महापर्व का विशेष महत्व होता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार हर वर्ष फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि मनाई जाती है। जो इस वर्ष 08 मार्च शुक्रवार को है।
श्री महाकालेश्वर मंदिर में शिव नवरात्रि के तृतीय दिवस सायं पूजन के पश्चात भगवान श्री महाकालेश्वर ने श्री घटाटोप स्वरूप में भक्तों को दर्शन दिये। इसके पूर्व प्रातः शासकीय पुजारी घनश्याम शर्मा के आचार्यत्व में 11 ब्राहम्णों द्वारा श्री महाकालेश्वर भगवान का अभिषेक एकादश-एकादशनी रूद्रपाठ से किया गया तथा संध्या पूजन के पश्चात बाबा श्री महाकाल को नीले रंग के वस्त्र धारण करवाये गये। इसके अतिरिक्त मेखला, दुपट्टा, मुकुट, छत्र, नागकुण्डल, मुण्ड माला एवं फलों की माला आदि धारण करायी गयी।
प्रतिदिन हो रहा है मंदिर प्रांगण में नारदीय कीर्तन
देवर्षि नारदजी खड़े होकर करतल ध्वनि व वीणा के साथ हरि नाम कीर्तन करते हैं। इसलिए कीर्तन की इस पद्धति को नारदीय कीर्तन कहा जाता है। श्री महाकालेश्वर मंदिर में यह परंपरा विगत 115 वर्षों से भी अधिक समय से चलती आ रही है। श्री महाकालेश्वर मंदिर के प्रागंण में शिवनवरात्रि निमित्त सन् 1909 से कानडकर परिवार, इन्दौर द्वारा वंशपरम्परानुगत हरिकीर्तन की सेवा दी जा रही है।
इसी तारतम्य में श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति द्वारा कथारत्न हरि भक्त परायण पं.रमेश कानडकर के शिव कथा व हरि कीर्तन का आयोजन सायं 04:30 से 06 बजे तक मन्दिर परिसर मे नवग्रह मन्दिर के पास संगमरमर के चबूतरे पर चल रहा है। शनिवार को पं.श्री कानडकर जी ने की कथा का में चित्रसेन गंधर्व के चरित्र का वर्णन किया जिसमें भक्त और भगवान के युद्ध के बारे में बताया। तबले पर संगत श्री असीम कानडकर ने की।
उत्सव के दौरान सम्पूर्ण मंदिर परिक्षेत्र में आकर्षक विद्युत व पुष्प सज्जा की गई है। शिव नवरात्रि उत्सव के दौरान बाबा महाकाल के दिव्य व अलौकिक दर्शनों के बाद श्रद्धालु आत्मिक शांति व स्वर्गिक आनंद का अनुभव करते हैं । भगवान श्री महाकालेश्वर जी के इस अलौकिक दर्शन का पुण्य लाभ श्रद्धालुओं को रात्रि होने वाली शयन आरती तक प्राप्त होता है।