सनातन संस्कृति में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। पंचांग के अनुसार यूं तो वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं और हर एकादशी का अपना एक विशेष महत्व है। मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष को पड़ने वाली एकादशी उत्पन्ना एकादशी कहलाती है। इस एकादशी को उत्पत्तिका, प्राकट्य और वैतरणी एकादशी भी कहते हैं।
सनातन मान्यता है कि इस तिथि को भगवान विष्णु से एक देवी प्रकट हुई थीं, जिन्हें एकादशी के नाम से जाना जाता है। इसलिए इसे उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। देवी एकादशी ने मुर नाम के राक्षस से इंद्रदेव को और समस्त स्वर्गवासियों को बचाया था।
उत्पन्ना एकादशी के दिन जो भगवान विष्णु की उपासना करता है और व्रत रखता है उसकी हर इच्छा पूर्ण होती है। इस दिन श्रीहरि विष्णु के साथ माता एकादशी की पूजा करनी चाहिए। शास्त्रों में उत्पन्ना एकादशी को पहला एकादशी व्रत माना गया है। जो लोग भी एकादशी का व्रत शुरू करना चाहते हैं, वे इस व्रत से शुरुआत कर सकते हैं। जो भी उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखता है, उसके वर्तमान के साथ पिछले जन्म के पाप भी मिट जाते हैं।
उदयातिथि के अनुसार इस वर्ष सनातन पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की उत्पन्ना एकादशी शुक्रवार 8 दिसंबर 2023 को है। एकादशी तिथि शुक्रवार 8 दिसंबर 2023 को सुबह 5:06 बजे शुरू होगी और शनिवार 9 दिसंबर 2023 को सुबह 6:31 बजे एकादशी तिथि का समापन होगा। एकादशी के दिन भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 7:01 बजे से सुबह 10:54 बजे तक है। उत्पन्ना एकादशी का व्रत का पारण शनिवार 9 दिसंबर 2023 को दोपहर 1:15 बजे से दोपहर 3:20 बजे तक किया जा सकेगा।
उत्पन्ना एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान के बाद साफ वस्त्र पहने और व्रत का संकल्प लें। एकादशी व्रत से एक दिन पहले दशमी की रात को तामसिक भोजन न करें। शुभ मुहूर्त में भगवान विष्णु का दक्षिणावर्ती शंख में दूध और केसर मिलाकर अभिषेक करें। चंदन से श्रीहरि को तिलक लगाएं और वस्त्र, फूल, सुपारी, नारियल, फल, लौंग, अक्षत, मिठाई, धूप, अर्पित करें। दूध, दही, घी, शहद और मिश्री मिलाकर पंचामृत बनाएं और तुलसी के साथ भोग लगाएं। उत्पन्ना एकादशी की कथा पढ़े। श्रीहरि विष्णु का स्मरण करें।