Saturday, May 4, 2024
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पौष पूर्णिमा 2024: तिथि, मुहूर्त, व्रत और सनातन महत्व

सनातन धर्म में पौष मास को भगवान सूर्य को समर्पित माना गया है, पौष मास में भगवान विष्णु की आराधना का भी विशेष महत्व है। सनातन मान्यता के अनुसार पौष मास में आने वाली पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इस माह में आने वाली पूर्णिमा को पौष पूर्णिमा कहा जाता है।

हिंदू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष मास खत्म होते ही पौष या पूस मास शुरू होता है, जो हिंदू कैलेंडर का दसवां महीना है। साथ ही इस मास की छोटा पितृ पक्ष के रूप में भी मान्यता है, इसलिए इस मास में पिंडदान, श्राद्ध, तर्पण करना शुभ माना जाता है। ऐसा करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और वह परिवारजनों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।

हिंदू पंचांग के अनुसार इस वर्ष बुधवार 27 दिसंबर 2023 से पौष मास शुरू हो रहा है जो गुरुवार 25 जनवरी 2024 को समाप्त होगा। पौष मास की पूर्णिमा तिथि बुधवार 24 जनवरी 2024 को रात्रि 9:49 बजे से प्रारंभ होगी और गुरूवार 25 जनवरी 2024 को रात 11:23 बजे समाप्त होगी। ऐसे में उदया तिथि की मान्यता के अनुसार पौष मास की पूर्णिमा के निमित्त स्नान और दान 25 जनवरी को किया जाएगा। पौष पूर्णिमा का दिन पवित्र नदियों में स्नान, दान और अनुष्ठान के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।

सनातन मान्यता है कि पौष पूर्णिमा के दिन किए गए धार्मिक कार्य का फल कई गुणा अधिक प्राप्त होता है। इसके साथ ही मान्यता यह भी है कि इस दिन वाराणसी के दशाश्वमेध घाट और प्रयाग के त्रिवेणी संगम में पवित्र स्नान अत्यधिक शुभ होता है। कहा जाता है कि इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने से जन्म-मरण के बंधनों से मुक्ति मिल जाती है।

पौष पूर्णिमा पर शुभ मुहूर्त में गंगा स्नान के बाद साथ-सुथरे वस्त्र धारण करें. इसके बाद सबसे पहले सूर्य देव को जल अर्पित करें। सूर्य देव को जल चढ़ाते समय ‘ॐ श्रीसवितृ सूर्य नारायणाय नमः’, ‘ऊँ हीं ह्रीं सूर्याय नम:’ या ‘ॐ आदित्याय नमः’ मंत्र का जाप करें।

सूर्य देवता को जल अर्पित करने के लिए उगते हुए सूर्य की ओर मुख करके खड़े होकर जल में तिल मिलाकर उन्हें अर्पित करें। इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा करें। भगवान विष्णु की पूजा के दौरान उन्हें जल, अक्षत, तिल, रोली, चंदन, फूल, फल, पंचगव्य, सुपारी, दूर्वा इत्यादि पूजन सामग्री अर्पित करें। पूजा के अंत में भगवान विष्णु की आरती करें। इस दिन किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराकर दान-दक्षिणा देनी चाहिए। दान में तिल, गुड़, कंबल और ऊनी वस्त्र विशेष रूप से देने चाहिए।

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