आसमान की विस्तृत
ऊंचाई नापने का लोभ
कर बैठे हैं अब
अहसास मेरे ,
परिंदे सा उड़ने
लगा है मन
कुलांचे भरने लगी हैं
कल्पनाएं मेरी,
नित नयी उमंगों से
प्रेरित हो…
कौतूहल भरी निगाहों से
ताक रही हूं मैं
अंबर का कोना कोना
सपनों को आकार
देने चल निकली हूं मैं
सच,ये वो दौर है जब
संभावनाएं सजीव होकर
निख़र रही हैं!
-निधि भार्गव मानवी