जब बून्द तरसती है धरती, अम्बर प्यार लुटाता है,
अंधियारी काली रातों में, पवन वेग बढ़ जाता है,
टूट टूट कर शाखों से जब, पत्ते भी झड़ जाते हैं,
घनघोर घटाएं छाती हैं, मन पर वो छा जाता है
जब बून्द तरसती है धरती…
कैसा है ये बंधन प्रियतम, याद तपिश मन भाती है,
तू ही छुपा सांसों में बस, गीत हवाएं गाती हैं
चंचल न की धारा पर जब, पैर जो तुम धर देते हो,
अंतस की तृष्णा में फिर, ये बारिस धूम मचाता है
जब बून्द तरसती है धरती…
उलझ सुलझ कर, उमड़ घुमड़ कर, आंखें बरसा करती हैं,
क्या बतलायें तुमको प्रियतम, अँखियाँ तरसा करती हैं
मिलन यामिनी चुपके से फिर, बांहों में आ जाती है,
नैन कटीली चितवन को, चितचोर चुरा जाता है
जब बून्द तरसती है धरती…
मंद मंद मकरंद छलकाए, रजनीगंधा की खुशबू,
प्रेम तपिश में तपता तन मन, उसपे मौसम का जादू
अधरों से जब अधर मिले तो, कम्पित कम्पित काया री,
उखड़ी उखड़ी सांसें बिखरी, रोम रोम हर्षाता है
जब बून्द तरसती है धरती…
पूर्ण हुआ जब प्रेम मिलन तो, शोख़ अदाएं शरमाई,
बिखरी-बिखरी जुल्फों में, हया घटाएं शरमाई,
डूब नशे में आँखें भी अब, बोझिल होने वाली है,
रहने दो अब बात यहीं पर, चाँद भी कहता जाता है
जब बून्द तरसती है धरती…
-कुमारी स्मृति ‘कुमकुम’
परिचय
कुमारी स्मृति ‘कुमकुम’
शिक्षिका एवं कवयित्री,
पटना, बिहार