जीवन खों इतनो छोटो कर दओ
पल ने लगो खोवै् में
माता पिता ने अपनो जीवन
जाखों दओ बनावै में
कैसी सोच हो गई रे मानस
जो तन मिलतो बर्षो में
छोटी-छोटी बातों में खो रऐ
जो जीवन अपनो क्षण भर में
पूरो तन भी पा के
जो तू न जी सकतो है
वो तोसे फिर बेहतर है
जो अपहिज होकर जीतो है
सड़को फुटपाथों पे घिसट कै
जो जीवन अपनो जीतोे है
कोनउ संकट आऐ बाधा,
मौत से कबंहु न डरतो है
सीखो इनसे विचारों जा पै
जीवन को कछु मोल करो
मानव जीवन है अनमोल
जाखो ने माटी मोल करो
-हंसा श्रीवास्तव
परिचय-
नाम- श्रीमती हंसा श्रीवास्तव
पति- डॉ (होम्यो) आरके श्रीवास्तव
माता- श्रीमती मिथलेश श्रीवास्तव
पिता-स्व. प्रभुदयाल श्रीवास्तव
संतान- इंजी अंकित सपना, इंजी सौरभ डॉ रुचि, इंजी शुभम आदित्य
जन्मतिथि- 1 जनवरी 1963
वर्तमान निवास- सी24, नर्मदा इंकलेव, अयोध्या बायपास, नरेला जोड़, भोपाल, मप्र
शिक्षा- एमए, हिन्दी, संस्कृत, बीटीआई, आयुर्वेद रत्न
संप्रति- शिक्षण कार्य 1993 से 2012 तक। लेखन में रूचि कविता कहानी हिदीं, बाल कविता, भजन लेखन एवं गायन।
सर्जना एवं सारस्वत मंच में काव्य प्रकाशन, साहित्य समीर, संगनी में रचना प्रकाशन, बुन्देली काव्य लेखन, भजन लेखन, मीठी निबौरी, साहित्य बारिधि में रचना प्रकाशन,
हिदीं काव्य संकलन झरोखा का प्रकाशन,
हिदीं महिला लेखिका संघ भोपाल की सदस्य