उस दिन शहर सो रहा था,
चांद के साथ सिर्फ़ हम दोनों जाग रहे थे
खुले आसमां को छत बनाए
हम एक दूसरे से बाते कर रहे थे
तुमने हाथों में मेरा हाथ लेकर कहा था
सुनो सात जन्म तो नहीं इस जन्म साथ रहना है
मैंने भी हाथों में हाथ भर के वादा किया था
आज जब कुछ साल गुज़र गए तो
लगता है वो वादा सिर्फ़ मेरी तरफ़ से ही था
तुम उस एक जन्म में ही शायद ऊब गई थी
या कहूं बोझ लगने लगा होगा इश्क़ हमारा
उस रात के बाद जैसे
चांद भी सो गया है
अंधेरा अमावस की रात जैसा छाया रहता है
अब पूर्णिमा की रात
सिर्फ़ किताबी बातें लगती हैं
लेकिन आज भी चकोर मेरे
जैसे चांद के इंतजार में है
यक़ीन है हम दोनों को
कि एक बार चांद फ़िर निकलेगा
रौशन होगी वो रात
तुम्हारे साथ हाथों में हाथों डालें
आ जाओ फ़िर से कि
आसमां भी हमारे इंतजार में है
-शिवम मिश्रा
मुंबई, महाराष्ट्र