देखकर हालत अवाम की
मानवता दिखती है नाम की
वो मीलों पैदल चल रहे है
सरकार फिर किस काम की
भूखे-प्यासे, बोझ से लदे है
तक्लीफ बड़ी है आम की
हाथ की मेहनत दाना देगी
चिंता है बहुत उन्हे काम की
लगे रहते है राष्ट्र निर्माण मे
कब मिली जिंदगी आराम की
हरसूं है उनका हक खाने वाले
नही मिली सही किमत काम की
रावणों से भरी पड़ी है ‘अश्क’
धरती आज ये श्रीराम की
-संजय अश्क
पुलपुट्टा, बालाघाट