मेल-मिलाप, ऊँच-नीच, लोभ- लालसा,
सब अपने चरम पर था,
विकास की भीङ अपने मुकाम पर थी
कौन आगे है ये सब में बताने की होङ मची थी,
अचानक सब शांत हो गए,
कोई बङा नहीं, कोई छोटा नहीं
बस अपने आप को बचाने की चुनौति
आखिर गलती किसकी थी?
जो जहाँ था वहीं थम गया
सब धरा का धरा रह गया
रोटी भी मुनासिब नहीं हो रहा सबको
कौन क्या है, कौन बताये किसको
जिद थी, बस अपनों के बीच लौटने की
कल तक जो अपनों के लिए छोङ आये थे सब कुछ
आज वही गाँव कसबा उनकी बाट जोह रहा था
क्या हुआ था ऐसा जो सबकी हालत ऐसी थी
आखिर गलती किसकी थी?
मनोरंजन व दिखावे के नाम पर आलिशान
अट्टालिकाऐं सुनी हो गई
जहाँ कल तक रौनक थी,
दिखावा- पहनावा सब फीकी हो गई
वो बङप्पन दिखाने की कोशिश
आगे बहुत आगे आने की दविश
सब कैद हो गए अपने घरों में,
पता नहीं किसकी नजर लगी थी
आखिर गलती किसकी थी
गांव-कस्बा, मोहल्ला-राज्य, देश-विदेश
सबका बस एक ही उद्देश्य
मिल जाए निजात इस
अनकही, अनसुनी, अदृश्य विपदा से
हो जाए सब कुछ वैसा का वैसा
भाग-दौङ सब पहले के जैसा
पर प्रकृति भी अपनी जिद पर अङी थी
मानों कह रही हो- हे मनुष्य,
ये सब तेरी, केवल तेरी ही गलती थी।
अगर समझ गए हो आप प्रकृति के कथन को
लौटा दो भावना, भाईचारा, खुशी-अमन को
सब ठीक हो जाऐगा, अगर सब ठीक हो गए
फिर से साथ मिलेंगें, हँसेंगें, होगी महफिलें भी
पर सुधरने का मौका मिला है, ये हकिकत सबकी थी
भूल से सीख लेना गलती हम सबकी थी
गलती हम सबकी थी
-पुष्कर जी निर्भय
पंचकूला, हरियाणा