कभी-कभी रात कुछ कहती है,
कान में धीरे से हौले से आकर,
क्यों इतनी मोहब्बत है मुझसे,
कितनी बेक़रारी से जागते हो,
मुझसे प्यार भी है तुमको या,
किसी ख़्वाब में रात फाँकते हो,
काश मैं तुम जैसी हो जाती,
रात जैसे चढ़ती मैं जवां हो जाती,
ढलती न ओर सवेरा न होता,
पूरी रात बस तू मेरा होता,
पर दिन धरती के आंचल से आएगा,
तेरा प्यार मेरे लिए ढल जाएगा,
तुमको नींद में छोड़ मैं जाऊँगी,
कल ढ़लती शाम मैं मिलने आऊँगी
-मनोज कुमार