चारों तरफ सन्नाटा है, खामोश ये नजारा है
कोई भूखा कोई प्यासा, कोरोना ने मारा है
खौफनाक मंजर है अंधेरा बहुत छाया है
चमकता सूरज भी निकलने से कतराया है
सब साधन है पर मनुष्य आज कितना लाचार है
दो वक्त की रोटी नहीं सचमुच बड़ा बेजार है
छटपटा रहे हैं मासूम, वक्त ये क्या कर रहा है?
भूखी माता के स्तनों से, दूध नहीं उतर रहा है
बीमारी लेकर हवाई जहाज से कुछ लोग आए हैं
कई किलोमीटर पैदल चल कर गरीबों ने छाले पाए हैं
जानवर सुकून में है, लेकिन इंसान रो रहा है
प्रकृति का कैसा चक्रव्यूह? अभिमन्यु सो रहा है
घर में कैद हुये, भयभीत मन में ख्याल आ रहे
जब सभ्यता को महामारी से घिरा हुआ पा रहे
उम्मीद लगाये बैठे हैं, इस जंग में इंसान को विजय पाना है
संयम और सतर्कता से इस महामारी कोरोना को भगाना है
–प्रज्ञा मिश्रा
पुणे