ख्वाबों की वो सड़क तब तक ही रोशन थी जब तक मेरा हाथ तुम्हारे हाथ में था… जैसे ही हाथ छूटे हम दोनों के, उस सड़क ने ले लिए एक डरावना रूप, एकदम वीरान हो गई मानो सालों से उस से होकर कोई गुजरा ही नहीं उस रास्ते के हर पेड़ पर लौट आया पतझड़ का मौसम, हाँ उन्हीं पेड़ों पर जहाँ खिले हुए थे हमारे प्यार के अनगिनत फूल..।
अचानक आई एक आँधी के बाद उस सड़क पर अजीब सा सन्नाटा छा गया.. और उस सन्नाटे में छिपी थी मेरी चीख..वमेरी सिसकी.. तुम दिख रहे थे, मुझे पर मेरे साथ नही.. शायद तुमने मंजिल बदल ली थी.. पर मेरी मंजिल और मेरा सफर सब कुछ तुम तक ही तो था.. मेरी नजरें तुम्हारे पीछे वहां तक गई जहां तक जा सकतीं थीं.. इस उम्मीद में की तुम मुड़ोगे और मुझे पहचान लोगे.. दौड़ कर आओगे और पूछ लोगे मेरे आंसुओं का कारण… समेट लोगे मुझे मेरे बिखरने से पहले… मगर
उस आँधी ने अलग कर दिया था हम दोनों का रास्ता, हमारा सफर और हमारे हाथों को भी…
तुम ने हाथ छोड़ दिया था या मेरा हाथ छूट गया था, ये मुझे ठीक से याद नहीँ पर मुझे तुम याद हो, याद है तुम्हारे मेरे हाथों को थामना और फिर अचानक जिंदगी के कठिन मोड़ पर मुझसे यूँ हाथ और साथ छुड़वा लेना।
मैं रो कर पुकार रही थी तुम्हारा नाम… कितना पुकारा तुम्हें, पर ने मुड़ कर देखना तो दूर रुकना भी जरूरी नही समझा।
..तभी अचानक आँख खुली घबराकर देखा तो खुद को अपने कमरे में पाया.. देखा कि खुली पड़ी हैं, सामने वो डायरी जिसमें कर रही थी मैं तुम्हारे नाम का जिक्र… तुम्हारे नाम का अक्षर मेरी आँखों से गिरे आँसू से भीग गया था… शायद उस पल महसूस किया हो तुमने भी मुझे कहीं खुद में.. पर यह केवल मेरा वहम है, असल में तुम मुझे सोचते तक नही हो महसूस क्या करोगे?
मैंने चैन की साँस ली शुक्र है यह सब ख्वाब था.. और रात का ख्वाब सच नहीँ होता अभी तो केवल 1:15 बज रहा था पर इतना बुरा ख्वाब!
सच तो यह है की रात के ख्वाब भी सच होते हैं और यह बुरा ख्वाब एक दर्दनाक हकीकत का रूप ले चुका है।
लिखते-लिखते शिवा की आँखें फिर नम हो गईं, वो रोज़ लिखती थी खुद की बर्बादी का किस्सा और सौंप देती थी रोज़ अपनी जिंदगी का एक पन्ना आग की लपटों को… जिसमे जल जाता था उसकी जगी आँखों का हर एक ख्वाब… उसने आज भी वही किया अपने ख्वाब के हकीकत बनने के सफर को लफ्जों में कैद करके सौंप दिया अपने हर दर्द को आग के हवाले रख बन जाने के लिए।.
-शाम्भवी मिश्रा