सूरज की रोशनी बिखर कर जम सी गई है
मायूसी में लिपटी जिंदगी कुछ थम सी गई है
ग़म भी पिघल रहा नहीं खुशी छुप सी गई है
आंखों में विरानी, चहलकदमी रुक सी गई है
अलसाई दोपहरी ताजगी देना भूल गुम सी गई है
गुनगुनाती शाम आंसुओं को चुप सी पी रही है
भय के साए में सोई रात भी अब जग सी रही है
जैविक आक्रमण से सांस अब थक सी गई है
आक्रामक संक्रमण है, जो है अब तक लाइलाज़
बचाव में बस अपने घर की परिधि ही रह गई है
एकमात्र विकल्प है, जिससे विषाणु की टूटती कड़ी है
कहे कोरोना पास रहो ना, सुरक्षा बस आपस की दूरी है
-सुजाता प्रसाद