घर-घर में जैसे- डॉ भावना

जाने कहाँ से पूतना बस्ती में आई है
घर-घर में जैसे मौत ने साँकल बजाई है

चमकी बुखार कहते हैं जिसको यहाँ के लोग
वो तो गरीब कौम की पहली लड़ाई है

ईमान का है गढ़ यहाँ, ग़ैरत की, क्या कहें
मरता है कोई, इसमें भी गाढ़ी कमाई है

कुछ तो सुनेगा महकमा, कुछ तो कहेंगे लोग
सहमी हुई जो मांओं ने अर्जी लगाई है

कैसे वो फिक्र छोड़कर सोयेगा रातभर
जिसने भी नींद बेचकर दौलत कमाई है

– डॉ भावना