चाँद सा सुंदर रूप तुम्हारा,
मीठा दर्द जगाता है।
जितना मुझसे दूर रहो तुम,
ये उतना ही बढ़ता जाता है
कभी न भूलूं वफ़ा तुम्हारी,
तुम दिल में हमेशा रहती हो
मिलने को मन मचला करता,
पर दूर बहुत तुम रहती हो
शीतल चन्दन सा वो मुखड़ा,
याद हमें अब आता है
जितना मुझसे दूर रहो तुम,
ये उतना ही बढ़ता जाता है
इक प्यारा सा ख़त लिखकर मैंने,
इज़हार प्यार का कर डाला
ढाई अक्षर प्रेम का मैंने,
अपनी क़लम से लिख डाला
याद सताए हर पल तेरी,
दिल हाथ से निकला जाता है
जितना मुझसे दूर रहो तुम,
ये उतना ही बढ़ता जाता है
-राम सेवक वर्मा
विवेकानंद नगर, पुखरायां
कानपुर देहात, उत्तरप्रदेश