सुनता नहीं है कुछ, न ही कहता है आजकल
चेहरा उदास चाँद का रहता है आजकल
आँखों में रखके दर्द का जलता हुआ चिराग़
चुपचाप ग़म की मार वो सहता है आजकल
इक दिन न तुमको फेंक दे जड़ से उखाड़कर
झोंका हवा का तेज़ हो बहता है आजकल
दौलत की भूख सबको है शोहरत की चाह है
रिश्तों का हाथ कब कोई गहता है आजकल
महलों की चौकसी है तो बंगलों का है बचाव
कुटिया का स्वप्न ही यहाँ ढहता है आजकल
-डाॅ भावना