विरही मन व्याकुल तड़प रहा,
नयना गागर छलकाए हैं।
आकुलित हृदय में प्यार भरे,
छंदों के स्वर लहराए हैं।
सुधियों का उपवन हरा-भरा,
बीते दिन याद दिलाता है।
मिलने को आतुर जिया पिया,
निशिवासर ही अकुलाता है।
आ जाओ सपने सिंदूरी,
चुन-चुन कर सजन सजाए हैं।
विरही मन व्याकुल तड़प रहा,
नयना गागर छलकाए हैं।
क्या मजबूरी जो है दूरी,
या तुमने मुझे भुलाया है।
या सौतन कोई मिली तुम्हें,
जिसके सँग नेह लगाया है।
आशंकाएँ ज्वाला बनकर,
तन-मन मेरा झुलसाए हैं।
विरही मन व्याकुल तड़प रहा,
नयना गागर छलकाए हैं।
सुख-चैन लूट कर नींद गयी,
अब सेज बनी है अंगारा।
सुलगाती मुझको हूक सजन,
मन तुम्हें ढूँढता बंजारा।
वासंती मौसम ने विरही,
अंतर् में शूल चुभाए हैं।
विरही मन व्याकुल तड़प रहा,
नयना गागर छलकाए हैं।
वो मधुर प्यार की रसभीनी,
बातें क्या तुमको याद नहीं।
तुम छोड़ गए जिस ठाँव सजन,
मैं आज तलक भी खड़ी वहीं।
दिन -मास बरस बीते कितने,
कातर लोचन पथराए हैं।
विरही मन व्याकुल तड़प रहा,
नयना गागर छलकाए हैं।
हर पल विरहिन का सदी बना,
चिंता में सूख गई काया।
आने का वादा तोड़ स्वयं,
क्यों तुमने मुझको बिसराया।
ढल रही उमर फिर भी दिल में,
आशा के दीप जलाए हैं।
विरही मन व्याकुल तड़प रहा,
नयना गागर छलकाए हैं।
-स्नेहलता नीर