सुनो!
तुम्हें पता है
जब मैंने तुम्हें देखना चाहा
तो तुम फूलों में खिल गये
जब चाहा कि महसूस करूँ
तो घुल गये साँसों में खुशबू बन
जब चाहा कि वंदन करूँ तुम्हारा
तुम ढल गये मंदिर की मूरतों में
और फिर एक दिन मैंने तुमसे मिलना चाहा…
तो तुम छिप गये
नहीं आये नजर।
मैं तड़प उठी बेतहाशा
तब एक पपीहे ने कहा
मुझे ढाढस बँधाते हुए
पगली! तू आदम जात है
तुझे फरिश्ते से इश्क नहीं करना था।
हाँ नहीं करना था फरिश्ते से इश्क तुझे…
नहीं करना था
-रचना शास्त्री