ठंडी हवाओं का इस कदर रूक जाना,
समंदर के लहरों का इस कदर थम जाना,
प्रतीत होता है कोई बड़ी उथल-पुथल की।
श्रृद्धा के चौखटों का इस कदर बंद होना,
स्वयं से स्वयं का इस कदर जंग होना,
प्रतीत होता है कोई बड़ी उथल-पुथल की।
पत्थरों का इस कदर आंसू बहाना,
समंदर के लहरों का इस कदर बिलखना,
प्रतीत होता है कोई बड़ी उथल-पुथल की।
झरनों का इस कदर यूं सुख जाना,
अपनी हवेली में इस कदर छूप जाना,
प्रतीत होता है कोई बड़ी उथल-पुथल की।
जंगलों में इस कदर धुंवाओं का उठना,
एका एक अपनों का साथ यूं छूटना,
प्रतीत होता है कोई बड़ी उथल-पुथल की।
-जयलाल कलेत
रायगढ़, छत्तीसगढ़