ढलती शाम के पहले- रकमिश सुल्तानपुरी

हुई है आज फ़िर उलझन दवा तो कर
ज़रा उनको मुहब्बत हैनपता तो कर

क़रीब हो इतना तो गुरेज़ कैसा अब
कि ढलती शाम के पहले मिला तो कर

मिटेंगे फ़ासले बेशक़ दरम्यां के
वफ़ा कर और मिलने की दुआ तो कर

इज़ाफ़ा हो रहा है अब सुकूँ में भी
कि ख्यालों से मुझे अपने छुआ तो कर

असर होगा मिलेगी चुभन को राहत
इशारों से मुहब्बत पर हवा तो कर

कट जाएगा सफ़र यूँ ही जिंदगी का
बनके धड़कन दिल में चला तो कर

तू ही तू है ‘रकमिश’ नजऱ में हरसूं
मेरी चाहत को समझ वफ़ा तो कर

-रकमिश सुल्तानपुरी