तरक्की के विमान में बैठकर
बच्चे विहंसते हुए विदेश चले गये
हँसता खिलखिलाता हुआ घर
उदास अकेला मकान रह गया
परिवार के नाम पर
दो बूढ़े-बुढ़िया ही
एक-दूसरे का सूना चेहरा निहारते थे
नम-निगाहों से
रह-रहकर शरीर और आत्मा में
चुभती थी
समय की नुकीली सुई
लौट-लौटकर पछाड़ मारता था
स्मृतियों का समंदर
अकेलेपन का अजगर जकड़ने को
लपलपाता था जीभ
कृश काया से उलझ-उलझ जाता था
उम्र की ऊन का गोला
फिर एक दिन
पत्नी भी जा बसी
दूर किसी अंतरिक्ष में
अकेले बूढ़े आदमी के पास
अनमोल सम्पत्ति के नाम पर
स्मृतियों की एक एल्बम ही शेष थी
जिसमें उसके बच्चों
और पत्नी की तस्वीरें
चस्पा थीं चारों ओर
-जसवीर त्यागी