जिस शिद्दत से मैं तुमसे नाराज रहूंगी
उसी शिद्दत से मैं तुमसे प्रेम भी करूँगी
प्रेम नाराज होकर खत्म नहीं होता
ना नफरत में बदल सकता है
बस प्रेम अपनी निष्ठा पे
एक शब्द भी नहीं सह सकता
कभी जब पूरे-पूरे दिन
तुम्हे याद नहीं किया तो सोची
कहीं मर तो नही गया मेरे भीतर
तुम्हारा प्रेम
उफ्फ! मन के भीतर भरे अवसाद
इतनी पीड़ाएँ, भावनाओं की सड़न
मरी हुई उम्मीदों के जिस्म से
उठती हुई दुर्गन्ध
शायद नही सह पाया होगा
और घुटन से मर गया होगा
पर नहीं
सड़े-गले उन तमाम अवशेषों से
लड़कर पनप रहा था,
अजब सी जिजीविषा थी
दर्द, आँसू, टीस सबसे प्रतिक्रिया करके
कुकुरमुत्ते की तरह खिल रहा था
मेरे मन के भीतर तुम्हारा प्रेम
फिर ये समझ आया कि प्रेम
नाराजगी, अफसोस और दर्द से
कभी खत्म नही होता
बल्कि और उन्नत हो जाता है
-रुचि शाही