कई दिनों से
तेरे लफ्जों के शब्दों ने
मेरे लफ्जों के शब्द को चूमा नहीं है
शायद वो भूल गए हैं
बतकही करना
कई दिनों से
शब्दों ने तेरे
नहीं संवारे हैं मेरी जुल्फों को
लगता है वे भूल गए हैं
प्रेम करना
शब्द अब खामोश हैं
दोनों के
दिवार के भीतर से
एक रास्ते की खोज में
तुम भी निकलो
मैं भी निकलती हूं
ढूंढने तुम्हारे शब्द
तुम्हारी बतकहियां
तुम्हारा प्रेम
मसलन तुमको
और तुम में खोये खुद को भी
-मधु सिंह