पूर्णिमा की रात बन कर,तुम हृदय पर छा रहे|
चाँदनी का रूप धर कर, प्रीत तुम बरसा रहे||
रात जाती कट नयन में, भोर मधु सरसा रही|
देख अपना प्रिय मिलन ये, मन कली हरसा रही||
प्रीत पूरित छवि निरख के, हिय हरित उपवन हुआ|
कोकिला के कंठ सम प्रिय, पिपहिरी सा मन हुआ||
शुभ्र् लगती चहुँ दिशायें, दृश्य सब रमणीय है|
प्रीत में डूबे हुये सब, लग रहे कमनीय हैं||
मन कुमुदिनी खिल गई है, फूल सब सुरभित हुये|
मंजरी झूमी मगन हो, वात रस मुखरित हुये||
बज रही है झम झमा झम, सज नुपुर प्रिय पाँव में|
झूमती हैं कल्पनायें, प्रीत की मधु छाँव में||
यूँ लगा तुम आ गये हो, प्रिय बसंती रूप में|
खिल रही बन मेदिनी मैं, साथ तेरे धूप में||
हो मधुर चिरकाल तक अब, हिय मिलन का खेल ये|
युग युगों तक रस भरे उर, प्रिय हमारा मेल ये||
-श्वेता राय