दर्द, आँसू और अहसास- त्रिवेणी कुशवाहा

दर्द आँसू और अहसास
जीवन के हैं सब खास,
क्या लिखूँ मैं आज।

गरीबों का आस लिखूँ
अमीरों का विलास लिखूँ
पाखण्डीयों का जाल लिखूँ
लिखूँ भ्रष्ट नेताओं का दास्तान
क्या लिखूँ मैं आज।

नारी की पीड़ा लिखूँ
पियत पुरुष मदिरा लिखूँ
बाल मजदूरों की जखीरा लिखूँ
लिखूँ घुमत शिक्षित युवा बेरोजगार
क्या लिखूँ मैं आज।

बेटा बे कद्रदान लिखूँ
बहू का अहंकार लिखूँ
नारी पर नारी का अत्याचार लिखूँ
लिखूँ बच्चों द्वारा माँ-बाप का दुर्दशान
क्या लिखूँ मैं आज।

दहेज़ की लालच लिखूँ
पति परमेश्वर राक्षस लिखूँ
बेवफा पत्नी की कहानी लिखूँ
लिखूँ स्वर्ग से सुन्दर घर-परिवार
क्या लिखूँ मैं आज।

सरकारी अनुदान लिखूँ
भ्रष्ट कर्मचारी कर्म कार लिखूँ
व्यापारी का लूट-खसोटन लिखूँ
लिखूँ रोता-बिलखता किसान
क्या लिखूँ मैं आज।

अमीर-गरीब की खाईं लिखूँ
जाति-धर्म की परछाई लिखूँ
धर्म-अधर्म की लड़ाई लिखूँ
लिखूँ मानव मानवता का इंसान
क्या लिखूँ मैं आज।

-त्रिवेणी कुशवाहा ‘त्रिवेणी’