मुझे लगा था
बोलना बस मुझे आता है
पर नही…
मेरे आस-पास तीन चार मर्द
और कुछ औरते हैं
बहुत मुंहजोर और नंगे
ज़ुबान वाले लोग
ये बस ज़ुबान से ही नहीं
खुद भी नंगे हैं
इनके उपर इनकी सोच
इनकी तालीम और चरित्र का
कोई आवरण नहीं है।
हाँ ये लोग नंगे हैं
क्योंकि इनके मन मस्तिष्क में
इनके अपने विचारों का
कोई पर्दा नहीं
ये लोग सही-गलत समझने वाले
विवेक की चादर भी
उतार के फेंक चुके हैं।
पर ये लोग संस्कार की
बहुत बड़ी-बड़ी बातें करते हैं
दूसरों के संस्कार छोटे
और अपने बहुत ऊँचे बताते हैं
ये हज़ारों ज़ुबान वाले लोग हैं
बहुत विष भरा है इनकी बातों में
ऐसा विष जो वक्त के साथ
और प्रबल होता जाएगा
सांप की तरह दिखे थे मुझे
केंचुली उतारने के बाद
पूरे नंगे….
इसलिए शर्म से मैंने
नजरें झुका ली है अब
हमेशा-हमेशा के लिए
– रुचि किशोर