नीला आसमां- अनिल कुमार मिश्र

ये जो
नीला आसमां
दिख रहा है
अपनी बाहें फैलाये
ये ऐसा ही नहीं है
कूट कूट कर भरी हैं
शैतानियाँ,
छतरी के नीचे की
हर गतिविधियों को
इसने अपनी नग्न आँखों से
जी भर निहारा है
जी भर पिया है इसने
प्रेम के उन्माद को
छलकते, छटपटाते विषय को
ह्रदय में उतारा है इसने,
हर उम्र की लीला
का मूक गवाह है
यह खुला आसमां
कोई छोटी चीज़ नहीं
प्रेम के विविध रूपों को
विविध विधियों से
अपने अंदर उतारा है इसने
शैतानियाँ आज भी है
इसमें
नीला जो है
भीतर से काला
आज भी खिड़कियों के भीतर
परदे के अंदर भी
झाँक ही लेता है
लाख रोको
प्रयास निरर्थक हैं
झाँकने दो, यह आकाश ही तो है
हमपर अपनी करुणा, स्नेह बरसाता
हमारा शुभचिंतक ही तो है
रोकता तो नहीं हमें
झाँकने दो इसे
विविध पहलुओं से
सुंदरता यही है इसकी
जीने दो इसे भी
नीला, शैतान
आसमाँ है ये
प्यारा भी है
हम सबका सहारा भी है

-अनिल कुमार मिश्र ‘आञ्जनेय’
गांधी नगर पूरब
हज़ारीबाग़, झारखंड
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