जेब खाली हो फिर भी कभी मना नहीं करते
मैंने अपने पापा से अमीर आज तक नहीं देखे
पिता एक उम्मीद है, एक आश है
परिवार की हिम्मत और विश्वास है
मां की ममता और पिता की क्षमता
संभव नहीं औलाद को अंदाज आंकना
मेरा साहस मेरी इज्जत मेरा सम्मान है पिता
मेरी ताकत मेरी पूंजी मेरी पहचान है पिता
पिता की फटी बनियान देख समझ आता है
भाग्य के छेद को तो पहले उन्होंने ही देखा है
आज भी वो प्यारी सी मुस्कान याद आती है
मेरी शरारतों पर पापा के चेहरे खिल जाती है
पिता से ही बच्चों के ख्वाब ढेर सारे सपने हैं
पिता है तो बाजार के खिलौने सारे अपने हैं
देवकी यशोदा की तारीफ,
करनी है और होनी ही चाहिए
बाढ़ में टोकरा उठाएं,
बासुदेव को भी नहीं भूलना चाहिए
राम भले ही कौशल्या के पुत्र थे
उनके वियोग में जान देने वाले दशरथ ही थे
संसार के हर पिता को यह समर्पित है
भगवान समान पिता को कोटि कोटि अर्पित है
-मनोज शाह ‘मानस’
सुदर्शन पार्क, मोती नगर,
नई दिल्ली