क्यों बरखुरदार क्या चल रहा है ये सब……?कब से चल रहा है…….??
क्या द..द्..दू… कुछ भी तो नहीं……। दादा जी की अचानक हुई सवालों की बारिश से अंशू घबराकर हकलाने लगा। इकलौता होने की वजह से माँ पापा दद्दू सबका लाड़ला था। दद्दू उसे बहुत चाहते थे। उसकी हर फरमाइश पापा के पहले दद्दू पुरी कर दिया करते थे। तेज भी थे….. शायद उम्र का तकाजा था गुस्सा भी नाक पर रहता था।
अंशू का कालेज में आखरी साल था। कालेज में ही अंशू की मुलाकात रुही से हुई थी और दोनों अच्छे दोस्त बन गए थे। रुही सीधी साधी प्यारी सी लड़की थी। दोनों की दोस्ती का रिश्ता कब प्यार में बदल गया पता ही न चला।
अंशू अभी कालेज से लौटा भी था कि दद्दू के सवालों से घबरा गया।
तेरी बाइक में कौन बैठी थी……? किसको घुमा रहा था……..?? दद्दू गरजे…. जी दद्दू कालेज में मेरे साथ पढ़ती है रुही नाम है…. कालेज पढ़ने जाते हो या लड़की घुमाने…. आइंदा
ऐसा न हो….पढ़ाई पर ध्यान दो।
जी दद्दू …..मन ही मन रो ही पड़ा अंशू घर में सही समय पर बताता उसके पहले ही बम फूट गया……..। परिक्षा हुई और अच्छे नंबरों से पास भी हो गया.. सभी खुश थे माँ पापा दद्दू ने बधाई दी और हां शाम को तैयार रहना तुम्हारे लिए लड़की देखने जाना है…..पर दद्दू… अभी..तो….। पर वर कुछ नहीं.. । उसने कातर निगाहों से माँ पापा की ओर देखा पर वे भी कुछ न कर पाए।
अंशू का दिल फूट फूट कर रोने का हो रहा था पर न कहा न सहा जा रहा था,
शाम को लड़की वालों के घर पहुंचे। अंशू अनमना सा बैठा था तभी लड़की चाय की ट्रे लेकर आई। रुही को देख अंशू खुशी से उछल पड़ा।
लड़की पसंद है कि नहीं…. दद्दू ने रोबदार आवाज में मुस्कुरा कर पुछा।
द..द्..दू……. आगे के शब्द हलक में ही अटक गये…. रुके हुए आंसुओं के सैलाब ने बांध तोड़ ही दिया.. दद्दू ने उसे गले से लगा लिया मां पापा भी मुस्कुरा रहे थे, शायद उन्हें सब पता था। तुम्हारी एक मुस्कुराहट के लिए कुछ भी कर सकते हैं… दद्दू की आवाज सुनाई ही नहीं दे रही थी। दद्दू उसे किसी फरिश्ते से कम नहीं लग रहे थे। दुरियों और डर का रिश्ता कब का दोस्ती और प्यार में बदल गया था और दद्दू से बढ़ कर कोई दोस्त नहीं था।
-गौतम जैन
(सौजन्य साहित्य किरण मंच)