पहले हवाला देते थे वफा का,
क्या हुआ यू कैसे बदल गए
तुमने तीर चलाया तो कोई बात नहीं,
हमने ज़ख्म दिखाये तो बुरा मान गए
अब लाओ वफा-खुलूस-मोहब्बत का मरहम
तमाम इलाज, ला-इलाज हो गए
चमन में भी नही रही रवानी अब,
शायद भौंरे फूलों से मुख़ालफ़त कर गए
यकीनन अब नहीं पाकीजगी किरदार की,
जिन मोतियों को पिरोया था वही बिखर गए
जिन्हे सलीका ही नही सफर-ए-हयात का
आज वही लोग वजीर हो गए
-शुभम ‘शहजादा’
मिरगपुर जिला-बालाघाट
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