Sunday, November 3, 2024
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मलय पवन मदमाती- श्रीधर द्विवेदी

श्री जयदेव कृत गीत गोविंद का वसन्त वर्णन-
‘ललित लवंग लता परिशीलन’
हिन्दी काव्यन्तरण का प्रयास
***
शुभग लवंग लता आलिंगय,
मलय पवन मदमाती

मधुप समूह गूँज कुंजन में,
कोकिल मधुरिम गाती
मधुऋतु मध्य विचर हरि नाचें,
विरहिन पीर पराती
मलय पवन….

मदन जगावन यह वसन्त वन,
पथि वधु विरह विलापे।
मधुकर पुंज सुमन रस मातल,
वकुल कुसुम झुक झापे
मलय पवन…

कस्तूरी सम सुरभित मालति,
कुन्ज कुन्ज मद माती
नख सम खिले पलास कुसुम ज्यों,
काम विदारत छाती
मलय पवन…

केसर सुमन छत्र बन छाए,
मदनभूप वन आया
भ्रमर विलास करें पाटल पर,
काम वाण कृत छाया
मलय पवन…

कुसुमाकर छवि निरख तरुण जग,
तज लज्जा शठ हासे
विरही ह्रदय केतकी वेधय,
कुन्त रूप परिहासे
मलय पवन…

माधवि परिमल पूर्ण ललित ऋतु,
सन्त असन्त बनाता
यह वसन्त युवती- युव प्रियतर,
अकारण प्रिय कहाता
मलय पवन…

मुक्ता लिपट आम्र बौराया,
आलिंगन से पुलकित।
निर्मल सलिल प्रवाहित यमुना,
वृंदावन मन हुलषित
मलय पवन…

कवि जयदेव रचित पद लीला,
ऋतु वसन्त छवि भाती
गोपी विरह वियोग पीर हर,
सुख भर देती छाती
मलय पवन…

-श्रीधर द्विवेदी

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