मेरी सिसकती आवाज का,
मैं ही गुनहगार हूँ,
मेरे हर इक आंसू का भी,
मैं ही गुनहगार हूँ
अपनी हवेली पर खुद ही,
हमले किए हमने,
अपनी बरबादी का,
मैं ही गुनहगार हूँ
किसी पर इल्जाम लगाना
मेरा कोई मकसद नहीं,
बहती धारों में डुब जाने का,
मैं ही गुनहगार हूँ
-जयलाल कलेत
रायगढ़ छत्तीसगढ़,