यह आकाश है
रात का आकाश रंगबिरंगी रोशनी से भरा
कितना खामोश हो गया
थोड़ी देर पहले तुमने पुकारा
शाम ने अपना घुँघट हटाया
चाँद बादल को पास बुलाता है
इस झिलमिल रोशनी में
अँधेरे से गुजरते तुमने सबको देखा
धूप खत्म हो गयी
अब पानी बरस रहा
अब किसका अकेला मन
आकाश के किनारे खड़ा है
समुद्र सारी रात हलचल से भरा है
झील के पार जंगल
सुबह में कितना हरा है
-राजीव कुमार झा