यहाँ बरसात में
हरियाली फैल जाती
ग्रीष्म में सुनसान हो जाता
पहाड़ों के नीचे
नदी का किनारा
पुराने पेड़ के नीचे
यात्रियों की आस में
बैठे रहते इक्केवाले
पाँच पहाड़ों से घिरे
इस नगर को
एक दिन में पूरा घूमना
आसान नहीं है
घोड़ा कटोरा की
झील से लौटते
अक्सर शाम हो जाती
तब थकान में
डूबी शाम खूब भाती
जाड़े के मौसम में
सैलानियों की चहलपहल से
भर जाता है यह नगर
बोधगया से लेकर
आगे पाटलिपुत्र के रास्ते में
कहीं कोई मोड़ आगे वीरान नजर नहीं आता
वेणुवन में सुबह का सूरज
यहाँ सबको भाता
कुहासे की गहन धुंध में
चाँद सितारों की रोशनी में
कितने युगों से
सबको पुकारता यह नगर
सबकी डगर है
-राजीव कुमार झा