मुझे एक दीपक बनाने दे,
एक बार दिवाली मनाने दे।
बिजली को विराम देना है,
जरा पांच अप्रैल को आने दे।
मकसद जो भी है नौ मिनट की,
इतवार रात का नौ बजने दे।
अंधेरों से उजाले ही छटेंगे,
घर आंगन को दीपों से सजने दे।
एक कठिन गणित हल करना हैं,
अंकों को सही सूत्रों में बैठ जाने दे।
बात कोरोना की चैन तोड़ने की है,
तो चल एक दीया आंगन में जलने दे।
ये मिसाल है की हम संकट में साथ है,
छोड़ पुरानी दुश्मनी अब जाने दे।
देश को सलामत रखना भी तो है,
वो पांच तारिख का इतवार आने दे।
-जयलाल कलेत
रायगढ़ छत्तीसगढ़,