जो तेरे जज्बातों को जुबान पर आने से
पहले ही जान जाते हैं,
वो माँ-बाप ही होते हैं जो तेरे चेहरे से,
तेरी परेशानी को पहचान जाते हैं
तेरी खातिर सोलह सोमवार व्रत रहते,
उदास ग़र तू हो तो वो भी
खुश रह पाते कहाँ है,
मौका मिले तो तलाशना उनके कपड़े कभी
कि वो अपनी परेशानियाँ तुझसे छुपाते कहाँ हैं,
तेरी जरा सी तबीयत खराब होने पर
जो भगवान से भी लड़ जाते हैं,
वो माँ बाप ही होते हैं जो
अपनी जरूरतें रोककर
तेरी ख्वाहिशों को मुकम्मल बनाते हैं,
इसीलिए कहते हैं कि
मुमकिन कहाँ है शब्दों में बयां करना
माता-पिता की अच्छाई को,
ये तो वो शख्स हैं जो
पीछे छोड़ दें खुदा की खुदाई को
-अनुभव मिश्रा