शाम के साये में
तुम सिमट जाओगी
सुबह का पुलकित मन
अब किसके तन का सुवास है
कमर भर पानी की हिलोरों में
डूबती उतराती तट के पार
घर चली आयी
कितने गौर से
तुमने सब को देखा है
खुद के पास से
गुजरते हुए
बेहद अच्छा होगा
बातचीत में खामोश होकर
किसी को कुछ नहीं कहना
-राजीव कुमार झा