तेरी मोहब्बत सागर से गहरी हो
जो आकर समंदर में ठहरी हो
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गवाही देंगे मौसम, पेड़, हवायें, पत्ते,
ये कायनात तेरे इश्क़ की टहरी हो
उगता सूरज,आते बादल,चलती हवा,
रंगीन तितलियाँ, कुदरत तेरी प्रहरी हो
सुबह उठो तो दीदार हो तेरा आईना,
तुम्हें देखकर ही मेरी भोर की सहरी हो
तेरा जहान बड़ा है खुला आसमान है,
राहें बहुत, तुम तक जाने की एक दहरी हो
लो हर फ़ैसला तुम पर ही छोड़ा,
हम दोनों के बीच ना, कोई कचहरी हो
तेरा ईमान तो तू ही जानता है,
कोई गैर क्यों, अपने दरमियां पहरी हो
जो प्यास बुझाए ‘उड़ता, वो अहरी हो
जल सी लफ़्ज़ों में ढ़ली, नज़्म नहरी और लहरी हो
-सुरेंद्र सैनी बवानीवाल ‘उड़ता’
झज्जर, हरियाणा
संपर्क- 9466865227