बिजली की चमक, बादल की गरज से
डरकर तुमसे लिपट जाने वाली
आज बारिश में भीगते हुये भी
अपने काम पर चली जाती है
सिर्फ इतना ही बदली हूँ मैं माँ…
बिजली गुल हो जाने पर पूरे घर में
तुम्हारा दुप्पटा पकड़कर घूमने वाली,
आज पूरे मकान में अकेली रह जाती है
सिर्फ इतना ही बदली हूँ मैं माँ…
भूख लगी, भूख लगी
दिनभर कहते फिरने वाली
अब कई रात बिन खाये भी सो जाती है
सिर्फ इतना ही बदली हूँ मैं माँ…
कितना बात करती है तू रे लड़की
ये दिनभर तुम कहते न थकती
आज कितने दर्द मैं दिल में छुपा लेती हूँ
सिर्फ इतना ही बदली हूँ मैं माँ…
मुझे ये बनाने नहीं आता
दीदी से कह दो, ये कहकर
काम से पीछा छुड़ाने वाली
आज सुबह से रात तक काम करती है,
सिर्फ इतना ही बदली हूँ मैं…
मुझे ये दिला दोगी न माँ
ज्यादा नंबर से पास होने पर, जो कहती थी,
आज दूसरों की ख्वाहिशें पूरी करती है
सिर्फ इतना ही बदली हूँ मैं माँ…
सिर्फ तुम्हारे बगल में ही सोना है मुझको
ये कहकर लड़ने वाली,
आज घर के किसी कोने में पड़ी सो जाती है
सिर्फ इतना ही बदली हूँ मैं माँ…
साइकिल से गिर जाने पर
जो पूरी गली में शोर मचाया करती थी,
आज बड़े से बड़े जख्म खुद भर लेती है
सिर्फ इतना ही बदली हूँ मैं माँ…
जिसकी सारी उम्मीदें तुम थी
आज खुद कितनों की उम्मीदें बन गई
सिर्फ इतना ही बदली हूँ मैं माँ…
-शुभा मिश्रा ‘कनक’
रायपुर, छत्तीसगढ़