आशा और निराशा क्या है
अपना और पराया क्या है
सब तो पास पड़ा है तेरे
फिर सुख की परिभाषा क्या है
चलते-चलते थक मत जाना
देखो पथ में रुक मत जाना
जीवन है सुख-दुख का मेला
फिर दुख में घबराना क्या है
मौसम रोज़ बदलते रहते
आते-जाते हमसे कहते
अपने रंग बदल जाएं तो
उनका शोक मनाना क्या है
नैया ख़ुद ही खेनी पड़ती
मार दुखों की सहनी पड़ती
हम अपनी पर आ जाएं तो
फिर खोना औ पाना क्या है
असफलता पर खूब हँसेगा
सफल रहे तो साथ चलेगा
जग तो है सुख का ही साथी
फिर इस जग से आशा क्या है
-भावना दीपक मेहरा